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अजनबी हमसफ़र.

अतीत के पन्नों से.....


आज ना जाने क्यूं बार बार मन अतीत के यादों की भवर में चला जा रहा है....
हां हां.... मुझे अच्छी तरह याद है आज का ही दिन था वो वैशाली एक्सप्रेस की एस 4 की सीट नंबर 63साइड लोअर की बर्थ थी मेरी, और ट्रेन में घुसते ही अपने रिज़र्वेशन का पूरा पैसा वसूल करने के खातिर पैर पसार कर बैठ गया था मै।

लगभग आधे घंटे बाद वो परेशान सी इधर उधर देखते हुए बोगी में टहल रही थी। उसके माथे पर पसीने की दो बूंदे चमक रही थी और उसके बालो से दो लट उन चमक को ढकने की बेकार सी कोशिश कर रहे थे।
 पतली सी थोड़ी सांवली सी और बड़ी सी आंखों वाली..... एक परी जैसी! हां हां.. एकदम मेरे सपनों वाली परी के जैसी ही तो थी वो।

 अचानक हमारी आंखे एक दूसरे से मिली हाय........ दिल थम सा गया मेरा लगा सांसे जैसे रुक ही जाएंगी.. बस उसे निहारता ही रह गया था मै.... मेरा अल्हड़पन था या उसके सौन्दर्य का असर जो मुझे उस वक़्त सब कुछ छोड़कर बस उसी की आंखो में झांकने पर विवश कर चुका था... सहसा उसके मोती जैसे चमकते दांत दिखाई पड़े और इंग्लिश के दो शब्द जो हमारी उसकी बातों के सिलसिले के पहले शब्द थे, मुझे सुनाई पड़े "एक्सक्यूज मी"।
पता है, ये सुनने के बाद थोड़ा सा जगा था मै, और मुझे पता है मै कुछ बोल सकने की स्थिति में नहीं था उस वक़्त, मैंने मौन में ही आंखो से yes की स्वीकृति दे दी थी।
जैसे मै उसके दिल की बात जान चुका था मैंने अपना पैर बिना उसके कुछ बोले सीट से नीचे कर उसके लिए बैठने की जगह बना दी थी।
हां बैठते वक़्त वो थोड़ा सा मुस्कुराई थी वो और उसकी मुस्कुराहट को ही मैंने धन्यवाद समझ लिया था।

ट्रेन की स्पीड बढ़ती जा रही थी और मेरे दिल कि बेचैनी भी.....
 वो अपने मोबाइल फोन में ही लगी थी पर मै तो किसी ना किसी बहाने उसे देखा ही कर रहा था। मुझे पता था मोबाइल देखते हुए भी उसका आधा ध्यान मेरे पर ही था कि मै उसे देख रहा हूं कि नहीं। भले ही मन में सोच रही होगी कि बड़ा कमीना है ना जाने क्यों घुर रहा है। पर देखती जरूर थी वो।

थोड़ी देर बाद ही अचानक उसने अपने बैग में से कुछ ढूंढ़ना शुरू कर दिया "ओह शिट" शायद यही...
......हां हां यही शब्द बोले थे उसने, उसे उसके इयरफोन नहीं मिल रहे थे।
अंधे को और चाहिए क्या दो आंखे,
मुझे तो बस मौके का इंतजार था।
तुरंत ही मैंने अपना ब्लूटूथ हेडफोन उसकी तरफ बढ़ा दिया ......
 मुस्कुराते हुए उसने अपने हाथो में ले लिया उसे।
......मुझे तो लगा जैसे मेरा दिल accept कर लिया उसने , मै जैसे सातवे आसमान पर था...
कुछ गाने सुन रही थी वो शायद अरिजीत सिंह के....
और अब तक मै अरिजीत सिंह का सबसे बड़ा फैन बन चुका था।😆


रात होने लगी थी और हमारे बातों का सिलसिला शुरू हो चुका था बातों बातों में पता चला वो भी दिल्ली ही जा रही थी। पर अभी तक हम दोनों एक दूसरे के नाम से भी अनजान थे।
खैर रात हुई सोने का वक़्त हुआ और हम अपने कन्फर्म सीट पर आधे में खुद और आधे में उसे सोते हुए देख रहे थे।
नीद तो दोनो के आंखो में थी ही नहीं देखा तो वो भी कनखियो से मुझे ही देख रही थी।

इसी तरह रात भी बीत गई और हम दोनों एक दूसरे को जान कर भी ना जान पाए।

मै चाहता तो था कि ट्रेन लेट हो जाए पर  ट्रेन को भी ना मेरा ही दिल तोड़ना था आज लेट नहीं हुई ट्रेन और एकदम राइट टाइम 6:40 पर नई दिल्ली स्टेशन पर खड़ी हो गई।

बुझे मन से अपने सहयात्रियों के साथ हम भी ट्रेन से उतरे और उसे ही देखने लगे पर वो मेरे दिल के धड़कनों के साथ साथ आगे बढ़ती ही जा रही थी।
थोड़ा आगे जा कर रुकी थी वो.... मुड़ी थी वो........
मेरे लिए, हां हां बस मेरे लिए
अपना एक हाथ उठा कर फिर से वही मुस्कान अपने होठों पर लिए हुए वहीं बड़ी सी आंखों से मुझे देखते हुए .....

हाथ हिलाकर bye किया था उसने..........

हाय...
..... ये मेरा दिल...... ये दिल फिर थम सा गया था, लगा सांसे फिर से रुक सी जाएंगी, और फिर से मै बस उसे जाते हुए देखता ही रह गया था।


(कल्पना पर आधारित)


Comments

  1. मयस्सर इजहार ए इश्क़ हो न सका
    कारवां तेरी यादों का ब्लॉग पर जा रुका

    ReplyDelete

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