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Showing posts from April, 2020

सच्ची सोलमेट

एक दिन वॉट्सएप पर एक लंबा सा मैसेज आया। जाने क्या क्या लिख रखी थी वो, अभी आधा ही पढ़ा था कि भावनाओं का तूफान उमड़ पड़ा। अक्षर धुधलाने लगे। आंखे नम होने लगीं। समाज का डर था ऑफिस में आंखे गीली कैसे करता। बड़ी मुश्किल से खुद को संभाला और नयनों के कपाट बंद करते हुए वापस उन्ही दिनों में चला गया। ट्रियुंड ट्रैकिंग के समय "अब मुझसे और ना चढ़ा जाएगा मयंक। अभी कितना ऊपर और जाना है?" कम ऑन तुम कर सकती हो बस थोड़ी दूर और बोलकर मैंने हाथ बढ़ा दिया और उसे अपनी ओर खींच लिया था। सिर्फ थोड़ी ही देर में हम दोनों टॉप पर थे और वहां हमारे साथ था बर्फ से भरा मैदान सामने एक और उची बर्फ से लदी चोटियां और हम दोनों के चेहरे पर विजय मुस्कान। ताजी हवा चेहरे को छु छू कर सिहरन जगा रही थी। प्रकृति के इस नरम स्पर्श ने मन को सहला दिया था। तापमान कम था जैसे उचाईयो पर अमूमन होता है मै इस पल को आत्मसात कर लेना चाहता था आंखे बंद कर बस इस दृश्य को दिल में भरने लगा। थोड़ी देर बाद जब आंखे खोला तो पाया कि उसके नयनयुग्म मुझ पर ही अटके हुए है। हे,, क्या हुआ तुम्हे, कहा खोई हो!! कहां खो सकती हूं, तुम ना होते तो

अजनबी हमसफ़र.

अतीत के पन्नों से..... आज ना जाने क्यूं बार बार मन अतीत के यादों की भवर में चला जा रहा है.... हां हां.... मुझे अच्छी तरह याद है आज का ही दिन था वो वैशाली एक्सप्रेस की एस 4 की सीट नंबर 63साइड लोअर की बर्थ थी मेरी, और ट्रेन में घुसते ही अपने रिज़र्वेशन का पूरा पैसा वसूल करने के खातिर पैर पसार कर बैठ गया था मै। लगभग आधे घंटे बाद वो परेशान सी इधर उधर देखते हुए बोगी में टहल रही थी। उसके माथे पर पसीने की दो बूंदे चमक रही थी और उसके बालो से दो लट उन चमक को ढकने की बेकार सी कोशिश कर रहे थे।  पतली सी थोड़ी सांवली सी और बड़ी सी आंखों वाली..... एक परी जैसी! हां हां.. एकदम मेरे सपनों वाली परी के जैसी ही तो थी वो।  अचानक हमारी आंखे एक दूसरे से मिली हाय........ दिल थम सा गया मेरा लगा सांसे जैसे रुक ही जाएंगी.. बस उसे निहारता ही रह गया था मै.... मेरा अल्हड़पन था या उसके सौन्दर्य का असर जो मुझे उस वक़्त सब कुछ छोड़कर बस उसी की आंखो में झांकने पर विवश कर चुका था... सहसा उसके मोती जैसे चमकते दांत दिखाई पड़े और इंग्लिश के दो शब्द जो हमारी उसकी बातों के सिलसिले के पहले शब्द थे, मुझे सुनाई पड़े &

असुरत्व से देवत्व की ओर.....

हम अपने ऊपर पड़ी विपत्तियों को अगर ध्यान से देखे तो दिखेगा कि सदैव विपत्तियां हमे अच्छी सीख भी देकर जाती है। अब इस कोरोना नामक विपत्ति को ही ले लीजिए इसने हमारे जीवन शैली में इतना परिवर्तन ला दिया है कि हम भूल गए है कि हम २१सदी जैसे मॉडर्न युग में जीवन व्यतीत कर रहे है। आज हम धीरे धीरे सभी प्रकार के दोषों से मुक्त हुए जा रहे है। किसी को भी किसी से द्वेष नहीं रहा ना ही हम लोगो में किसी प्रकार का विकार,  आज कल कहीं भी किसी प्रकार का अपराध सुनाई भी नहीं पड़ रहा है। सब तरफ मात्र इस कोरोनावायरस नामक राक्षस के चर्चे ही सुनाई दे रहे है। हमारा देश आज इस असुर के सर्वनाश के लिए एक दिख रहा है। हमारे एक अभिन्न मित्र आज हमारा हाल चाल पूछते वक्त हमसे आज दिन कौन सा है पूछ बैठे और सच बताए तो हमे भी एक पल सोचना पड़ा कि सच में आज कौन सा दिवस है। आज हम इस हमारे बनाए हुए रविवार सोमवार जैसे नाना प्रकार के मायाजाल से मुक्त हो रहे है। या यूं कहे कि हम देवत्व को प्राप्त हो रहे है। आज गांव से शहरों को ओर पलायन करने वाले वापस फिर से अपने गांव में शरण ले लिए है। और जो नहीं आ पाए वो अपने गांव के सुख को य

सबके राम🙏

लॉक डाउन विशेष - अगर आप गोस्वामी तुलसीदास रचित श्रीरामचरित मानस का अध्ययन करेंगे तो आपको पता चलेगा की श्रीराम के सीता जी के वियोग में वन में भटकना एवं महादेव के द्वारा सती का परित्याग कर उनके वियोग में भटकना एक समानांतर काल की घटनाएं है। महादेव और श्रीराम दोनो एक दूसरे के भक्त है और दोनो एक दूसरे के भगवान भी है। भक्त और भगवान के बीच की प्रीति से बढ़कर प्रीति कोई नहीं हो सकती ऐसे में अगर एक पर कष्ट आता है तो दूसरा कैसे बच सकता है। जब श्री हरि श्री राम के अवतार में पृथ्वी पर साधारण मनुष्यों सा अपने पिता के वचनों के पालन हेतु वन में भटक रहे थे उसी समय महादेव को अपने आराध्य प्रभु के दर्शनों की इच्छा जगी और देवी सती सहित प्रभु के दर्शन हेतु पृथ्वी पर आ गए उस समय रावण सीता जी का हरण कर चुका था और प्रभु एक सामान्य मनुष्य की भांति पत्नी विरह में दुखी होकर वन में इधर उधर भटक रहे थे ऐसे में महादेव ने प्रभु को देखा और दूर से ही शीश झुका कर नमन किया। सती जी ने देखा कि हमारे पति जो तीनों लोको के स्वामी है आज एक साधारण मनुष्य के सामने नतमस्तक हो रहे है जो अपनी पत्नि के वियोग में इधर उधर भटक