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असुरत्व से देवत्व की ओर.....

हम अपने ऊपर पड़ी विपत्तियों को अगर ध्यान से देखे तो दिखेगा कि सदैव विपत्तियां हमे अच्छी सीख भी देकर जाती है।

अब इस कोरोना नामक विपत्ति को ही ले लीजिए इसने हमारे जीवन शैली में इतना परिवर्तन ला दिया है कि हम भूल गए है कि हम २१सदी जैसे मॉडर्न युग में जीवन व्यतीत कर रहे है।
आज हम धीरे धीरे सभी प्रकार के दोषों से मुक्त हुए जा रहे है। किसी को भी किसी से द्वेष नहीं रहा ना ही हम लोगो में किसी प्रकार का विकार,
 आज कल कहीं भी किसी प्रकार का अपराध सुनाई भी नहीं पड़ रहा है। सब तरफ मात्र इस कोरोनावायरस नामक राक्षस के चर्चे ही सुनाई दे रहे है।
हमारा देश आज इस असुर के सर्वनाश के लिए एक दिख रहा है।

हमारे एक अभिन्न मित्र आज हमारा हाल चाल पूछते वक्त हमसे आज दिन कौन सा है पूछ बैठे और सच बताए तो हमे भी एक पल सोचना पड़ा कि सच में आज कौन सा दिवस है।
आज हम इस हमारे बनाए हुए रविवार सोमवार जैसे नाना प्रकार के मायाजाल से मुक्त हो रहे है। या यूं कहे कि हम देवत्व को प्राप्त हो रहे है। आज गांव से शहरों को ओर पलायन करने वाले वापस फिर से अपने गांव में शरण ले लिए है। और जो नहीं आ पाए वो अपने गांव के सुख को याद कर मन मसोस रहे है।

आज कोई अमीर नहीं है कोई गरीब नहीं है, सभी प्रकार के दिखावे वाले उपकरण जैसे महंगी घड़ियां, महंगे आभूषण, महंगे उपकरण, महंगे वाहन सब घर के अंदर पड़े अपने पर रो रहे है।

लोगो के अंदर सहायता करने का भाव आ गया है लोग एक दूसरे की सहायता करने को तत्पर है।
आजकल लोग अपने अपने परिवार को वक़्त दे रहे है।

सोच कर देखिए क्या होगा यदि कल से कोरोनावायरस नामक राक्षस का प्रकोप समाप्त हो जाए। सब कुछ पहले जैसा हम फिर से वही पुराने ढर्रे पर आ जाएंगे फिर से हमारे अंदर एक दूसरे को हमसे आगे देख उसके प्रति ईर्ष्या भाव जागृत हो जाएगा, हमारे समाज में फिर से अपराध बढ़ जाएंगे हम फिर से राक्षसी प्रवृत्ति अपनाकर असुर बनने के मार्ग पर अग्रसर हो जाएंगे।

यह कोरोनावायरस रूप राक्षस तो मरेगा ही, पर जब तक यह नहीं मरता है हमें हमारा स्वर्णिम काल जीने का समय मिला है।
अब आप सोच रहे होंगे कि कोरोना में इतनी अच्छाइयां है तो मै इसे असुर की संज्ञा क्यों दे रहा हूं।
यह सिर्फ एक पहलू था अब दूसरे पहलू की ओर चलते है हमारे देश में गरीबी हमेशा से अभिशाप रही है इस विपत्तिकाल में भी गरीब वर्ग सबसे जादे इस से परेशान है। जो लोग रोज मजदूरी करके पेट पालते थे उनके लिए यह महामारी अभिशाप हो गई है। और यही पर हमारे देवत्व का प्रयोग करने का अवसर हमे मिलता है। हमे ऐसे लोगो की सहायता के लिए आगे आना होगा, कोरोना के संहार के बाद यह बेरोजगारी इत्यादि के बहाने कोरोना का अभिशाप हमारे अंदर आसुरी प्रवित्ती जगाने की कोशिश करेगा पर उस समय भी अपने देवत्व को भारी करते हुए अपने भाईयो की सहायता करते हुए इस असुर का पूर्णतया सर्वनाश हमे ही करना होगा।

इस स्वर्णिम काल में हमे अपने आप के देवत्व को जी भर कर जी लेने कि आवश्यकता है और इस कोरोना रूपी असुर के अंत के बाद अपने देवत्व का त्याग न करने की प्रतिज्ञा करने कि आवश्यकता है।

(शब्दों पर ध्यान मत दीजिए सब रामायण देखने का असर है)

*रत्नेश मणि पांडेय*

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