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शायद…

  मैं चाहता हूँ....कई महीनो बाद, तुम एक रोज़ मुझे Call करो, और वो Call, Receive ही न की जाये... फिर तुम एक और कोशिश करो,Call करने की, और फिर Receive न हो... फिर एक अरसे बाद,तुम्हे थोड़ी फ़िक्र हो,तुम Message करो मुझे... वो Messages जिसका कोई भी जवाब अब कभी नहीं आएगा... फिर तुम सच में थोडे और परेशान हो जाओ... तुम सोचो मेरे बारे में,मेरी हर बात,मेरी आवाज़,मेरा चेहरा... तुम्हारे लिए मेरी फ़िक्र..मेरे साथ बिताया हर एक लम्हा.. फिर तुम मुझे एक और Call करो,और फिर कोई Response न मिले, तुम फिर मुझे Message करो,जिसका कोई जवाब न मिले.. तुम अचानक बहुत बेचैन हो जाओ,तुम्हें सब कुछ याद आता रहे, तुम लगातार मेरे बारे में सोचो...तुम्हे सब कुछ याद आये.. सब कुछ... और एक दिन जब तुम्हें नींद न आये.. बस मेरी याद आये... तुम मुझे Social Media पर ढूँढो..फिर Message करो.. फिर Call करो..फिर कोई जवाब न मिले.. तब तुम Phone Gallery खोलकर..मेरी तस्वीरें देखो... तुम्हे गुस्सा आये, चीढ हो, तुम्हे रोना आये.. तुम्हें एहसास हो  कि मैं किस हाल में रह रहा हूँ..? परेशान होना क्या होता है..? टूट जाना क्या होता है...? फिर कुछ
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मेरी क़द्र

  आलू प्याज 20 के मिलते है या 15 के, 30 किमी दूर ये चीज शायद 5 रुपए कम में मिलेगी? आज घर में ये हुआ और कैसे हुआ ये सुनो लगभग 20 मिनट की कहानी है। कार छोटी अच्छी होती है या बड़ी? मुझे आज वाकिंग करनी है । सुनो ये वाली टॉप मेरे पर कैसे लगेगी। यार मैंने पैकिंग कर ली है। आज घर में बोर हो रहे है।.................. ये सब कुछ ऐसी बाते है जिनका जवाब मैं दू या ना दू ये जरूरी नहीं है बस मुझ तक पहुंच जाना जरूरी है और मुझे पता चल जायेगा की आपका मूड आज कैसा है, आज आपको क्या हुआ है? पता है तुमसे कभी बताया नही पर तुम्हारे आने की खुशी के साथ तुम्हारे जाने का डर भी मेरी जिंदगी साथ ही शामिल हुआ था। याद है पहली बार जब तुमने बोला था की हम कही लॉन्ग ट्रिप पर चलते है। तुमने बोल दिया और शायद भूल भी गई पर मैं उसी दिन से हर दिन उस दिन को स्पेशल बनाने में लग गया था। खैर ट्रिप भी हुआ और स्पेशल भी रहा शायद हम दोनो के लिए। और ऐसे ही धीरे धीरे तुम्हारे जाने का डर मेरी जिंदगी से गायब हो गया। और रह गया तो बस सुकून और भरोसा की अब बस तुम यही हो। कहते है न की सौ अधूरी कहानियों में एक मुकम्मल दास्तान तो होती है तो बस अपनी

दोस्ती......

 इश्क़ उगते सूरज की तरह सुर्ख लाल, दोस्ती ढलते शाम का ठहराव। इश्क़ is candle light dinner, moonlit works, बाहों का सहारा etc etc.... और दोस्ती एक दनदनाती रेस जिसमे एक अगर गिरे तो दूसरा हाथ पकड़ कर उठाता तो है पर उठाने से पहले ताली बजाकर हसता भी जरूर है। ऐसा ही कुछ कहती थी वो उसके लिए दोस्ती इश्क़ से बढ़कर थी और ना चाहते हुए भी उसकी बातो को agree करता रहता था मै bcoz I'm in love with her... और ये तो पूरी दुनिया को पता है इश्क में conditions नहीं होते। हम बातें करते, चैट के लिए हमने फेसबुक, व्हाटसएप, इंस्टाग्राम कुछ भी नहीं छोड़ा, लेकिन लेकिन अब ये दिल मांगे more, और इसीलिए हमारी ख्वाइश भी बढ़ चली थी अब हम एक दूसरे से मिलने की जिद करने लगे और हमने finally एक अच्छे से रेस्त्रां में dinner का प्लान बनाया। प्लान तो बन गया पर प्लान बनने के बाद मेरा नर्वसनेस सातवें आसमान पर था। क्या पहनना है कैसे दिखना है आफ्टरऑल ये मेरा पहला एक्सपीरियंस था और मुझे इसका एबीसीडी भी नहीं आता था। फाइनल डेट के एक दिन पहले की शाम को ही मैंने सारे चेक लिस्ट मार्क कर लिए ड्रेस done, वॉच done, शूज done, शेविंग do

मेरी डेट...

 मै करीब 19साल का था। डोपामिन और फिनाइल-इथाइल-एमाइन नामक रसायन शरीर में प्रतिक्रिया कर रहे थे। रातों की नीद गायब थी दिन का चैन गायब था। In shorts..... I was in love someone... दिल में कुछ कुछ हो रहा था। अब यह एकतरफा नहीं था। क्युकी अब मै अपने पहले डेट पर जाने वाला था। जगह डिसाइड हो गया। शहर का एक अच्छा और जाना माना रेसटोरेंट्स था वो. स्टेटस जमाने का चांस कैसे छोड़ सकता था। So the place was fixed... अब चुकीं डेट पर जाने का ये मेरा पहला अनुभव था और मैंने इस मिशन को अभी सीक्रेटली ही प्लान किया था तो मुझे कोई आइडिया था नहीं की डेट पर करते क्या है। 2-4 मूवी में देखा था लड़का लड़की डेट पर मिलते है वो कैंडल लाइट डिनर करते है। खूब सारी बाते करते है फिर लड़का लड़की को उसके घर के पास ड्रॉप करता है और रेसटोरेंट्स और घर के बीच में कहीं वो एक दूसरे को एक किस करते है।  अब डेट पर जाने के लिए well dressed होना बहुत जरूरी होता है। तो हमने भी स्पेशल इसी दिन के लिए एक नई शर्ट और जीन्स ले ली। एक रिस्ट वॉच भी ले ली।  आखिर वो दिन भी आ गया जिसका मुझे इंतज़ार था।  आज कमवख्त शाम ही नहीं हो रही थी। फिर शाम हुई

"मेरी इबादत"

ट्रांसफर के बाद नयी जगह पर अभी 3-4 दिन ही हुए थे। आज बैंक मे नये खाते खोलने के लिए बच्चो की काफी भीड़ लगी थी। स्कूल खुल गये थे और बच्चो को छात्रवृत्ति के लिए बैंक मे खाते की आवश्यकता थी । हम भी अपने सीट पर पूरी तन्मयता से काम कर ही रहे थे की अचानक मेरा ध्यान उस 14-15 साल की लड़की पर पड़ा। उसको देखते ही मै स्तब्ध रह गया। नही... नही....  ऐसा नही हो सकता। एक बार मैने अपनी आंखे बन्द की और दोनो हाथो से आंखो को मीच कर फिर खोला अरे बिल्कुल वही शक्ल ये तो असम्भव है। यह बच्ची तो उसकी हुबहू प्रतिकृति है। वो मेरे पास आई मैने कापते हाथो से उसकी फॉर्म लीया। मेरी नजर उससे हट ही नही रही थी। उसने घुरते हुए मुझे देखा। मैने अपना ध्यान हटा कर उसके फॉर्म पर लगा दिया। मेरा शक सही था, उसकी माँ का नाम वही था। हा वही तो था......... मै अतीत के भवर मे चला गया। आज से 20 साल पहले हम दोनो ने अपनी जिन्दगी के रास्ते अलग अलग कर लिए थे। पर वो 20 साल का एक एक दिन मैने उसकी याद मे ही बिताया है। उसके साथ बिताये हुए हर पल की यादो को मैने अभी तक अपने दिल मे सजा के रखा है। अचानक से बच्ची बोली, सर मेरा अकाउंट खुल जायेगा ना। और

सच्ची सोलमेट

एक दिन वॉट्सएप पर एक लंबा सा मैसेज आया। जाने क्या क्या लिख रखी थी वो, अभी आधा ही पढ़ा था कि भावनाओं का तूफान उमड़ पड़ा। अक्षर धुधलाने लगे। आंखे नम होने लगीं। समाज का डर था ऑफिस में आंखे गीली कैसे करता। बड़ी मुश्किल से खुद को संभाला और नयनों के कपाट बंद करते हुए वापस उन्ही दिनों में चला गया। ट्रियुंड ट्रैकिंग के समय "अब मुझसे और ना चढ़ा जाएगा मयंक। अभी कितना ऊपर और जाना है?" कम ऑन तुम कर सकती हो बस थोड़ी दूर और बोलकर मैंने हाथ बढ़ा दिया और उसे अपनी ओर खींच लिया था। सिर्फ थोड़ी ही देर में हम दोनों टॉप पर थे और वहां हमारे साथ था बर्फ से भरा मैदान सामने एक और उची बर्फ से लदी चोटियां और हम दोनों के चेहरे पर विजय मुस्कान। ताजी हवा चेहरे को छु छू कर सिहरन जगा रही थी। प्रकृति के इस नरम स्पर्श ने मन को सहला दिया था। तापमान कम था जैसे उचाईयो पर अमूमन होता है मै इस पल को आत्मसात कर लेना चाहता था आंखे बंद कर बस इस दृश्य को दिल में भरने लगा। थोड़ी देर बाद जब आंखे खोला तो पाया कि उसके नयनयुग्म मुझ पर ही अटके हुए है। हे,, क्या हुआ तुम्हे, कहा खोई हो!! कहां खो सकती हूं, तुम ना होते तो

अजनबी हमसफ़र.

अतीत के पन्नों से..... आज ना जाने क्यूं बार बार मन अतीत के यादों की भवर में चला जा रहा है.... हां हां.... मुझे अच्छी तरह याद है आज का ही दिन था वो वैशाली एक्सप्रेस की एस 4 की सीट नंबर 63साइड लोअर की बर्थ थी मेरी, और ट्रेन में घुसते ही अपने रिज़र्वेशन का पूरा पैसा वसूल करने के खातिर पैर पसार कर बैठ गया था मै। लगभग आधे घंटे बाद वो परेशान सी इधर उधर देखते हुए बोगी में टहल रही थी। उसके माथे पर पसीने की दो बूंदे चमक रही थी और उसके बालो से दो लट उन चमक को ढकने की बेकार सी कोशिश कर रहे थे।  पतली सी थोड़ी सांवली सी और बड़ी सी आंखों वाली..... एक परी जैसी! हां हां.. एकदम मेरे सपनों वाली परी के जैसी ही तो थी वो।  अचानक हमारी आंखे एक दूसरे से मिली हाय........ दिल थम सा गया मेरा लगा सांसे जैसे रुक ही जाएंगी.. बस उसे निहारता ही रह गया था मै.... मेरा अल्हड़पन था या उसके सौन्दर्य का असर जो मुझे उस वक़्त सब कुछ छोड़कर बस उसी की आंखो में झांकने पर विवश कर चुका था... सहसा उसके मोती जैसे चमकते दांत दिखाई पड़े और इंग्लिश के दो शब्द जो हमारी उसकी बातों के सिलसिले के पहले शब्द थे, मुझे सुनाई पड़े &