अजीब सा हो गया हु मैं,
एक इंसान ही तो नहीं मिला।
लग रहा है सब खो दिया,
बैठा रहता हु और सोचता रहता हु काश ऐसा हो जाता , काश वैसा हो जाता ।
हसी ही नहीं आ रही अब किसी बात पर मुझे, उसी के साथ हंसना आता था क्या??
लगा हुआ हूं फोन में उसकी फोटोज देखने जैसे और कोई काम ही ना हो।
गुस्सा आता है कभी कभी ,
ऐसे पागल क्यों हो रहा हूँ?
उसे तो कोई फर्क भी नहीं पड़ा मुझसे दूर जाने में।😌
मुझे क्यों जानना है कि वो ठीक है कि नहीं?
मुझे क्यों बताना है उसको की मैं ठीक नहीं हूं।
नहीं लग रहा उसके बिन दिल कहीं।
मैं जानता हु कि वो मेरी नहीं है,
पर फिर दिल को वही चाहिए तो मैं क्या करूं?
मन नहीं बाहर निकल के दोस्तो से मिलने का बात भी नहीं करना चाहता किसी से।
ऐसा लग रहा है कि मैं उदास ही रहना चाहता हूं।
निकलना ही नहीं चाहता उसे अपने जेहन से,
बात भी तो नहीं करती मुझसे यार.....🥲🥲
तभी तो और घुटता रहता हु ।
पता है मै उसके पहले भी अकेला था पर फिर भी इतना भी अकेला नहीं था ।
मैं कही भी जाता हु साथ आती है मेरे वो, बस पास नहीं होती अब याद बनके साथ आती है ।
मैं क्यों नहीं आगे बढ़ पा रहा उससे?
क्यों नहीं मान लेता कि वो मेरे लिए अपने ईगो को साइड करके वापस नहीं आने वाली है।
उम्मीद लगा कर बैठ हूं।
कभी तो पूछूंगा की मैं क्या करूं तुम्हे भुलाने के लिए ?
कितना वक्त लगेगा?
कब खुश होऊंगा मैं फिर से?
कब हसूंगा मै फिर से?
मुझे जवाब चाहिए।।।।।
तुम कैसे जी रही हो मुझे भी सीखना है।
बताओ जानना है मुझे?
या फिर बताओ मिलोगी कभी?
क्या हम फिर से मिल सकते है?
बोलो???
क्या मैं जी पाऊंगा कभी??
फिर से......
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