"यात्रा मुक्तिनाथ की" २-११-२०१८ तारीख बदल गए पर सुबह होने में अभी देर था। मनीष भाई की नीद खुल चुकी थी, और मुझे सोता हुआ वो देख नहीं सकते थे। उनके जबरन उठाने के कारण इतनी ठंडक में मै भी जगा पर आलस्य की वजह से आगे की यात्रा पर निकलते निकलते ५:३० हो गया। सुबह बड़ी ही सुहानी थी। पर -१°c में पहली नदी की धारा पार करते ही ठंड ने फिर से हमला बोल दिया। अब फिर जूते के अंदर पैर बुरी तरह ठंड से ठिठुर रहे थे पर हम इसी तरह ठिठुरते हुए कागविनी तक पहुंच गए। कागबेनी से रास्ते बन गए है पर चढ़ाई जयादे है । थोड़ी ऊंचाई पर धूप खिली दिख रही थी हम भी यहां रुक कर अपने पैरो को जूते से निकाल कर धूप सके और लगभग आधे घण्टे धूप में लेटे रहे।जब शरीर गर्म हुआ तो फिर मुक्तिनाथ के दर्शन को आगे बाइक दौड़ा दिए। थोड़ी ही देर में हम मुक्तिक्षेत्र में पहुंच चुके थे। मुक्तिनाथ 108 दिव्य देशों में से एक है। यह 'दिव्य देश' वैष्णवों का पवित्र मंदिर होता है। पारंपरिक रूप से विष्णु शालिग्राम शिला या शालिग्राम पत्थर के रूप में पूजे जाते हैं। इस पत्थर का निर्माण प्रागैतिहासिक काल में पाए जाने वाले क