एक सफ़र, हरि से हर की ओर।
अकाल मृत्यु वो मरे जो कर्म करे चांडाल का,
काल उसका क्या करे जो भक्त हो महाकाल का ।
कुछ ऐसा ही इस बार की यात्रा में हमारे साथ हुआ ।
पिछले एक सप्ताह से मुक्तिनाथ दर्शन की योजना दिमाग में घूम रही थी ।
मित्र मनीष जी इस बार हमारा साथ देने के लिए तैयार थे। भगवान शालिग्राम के दर्शन से संबंधित सारे योजना दिमाग में तैयार हो रहे थे। बाइक की सर्विस भी करा ली हमने, पर जाने से 2 दिन पूर्व सदा की भांति मनीष भाई इस बार भी पत्निप्रेम की वजह से यात्रा निरस्त कर दिए। पर उन्होंने मेरे अंदर के घुमक्कड़ को अब फिर से जगा दिया था। बस क्या था अब जाना तो था ही मनीष भाई नहीं जाएंगे तो क्या हुआ हम अकेले ही निकल जाएंगे कहीं। पर अब कदम पीछे तो नहीं होंगे हमारे। जिस दिन निकलना था अर्थात 21सितम्बर2018 को सुबह में 5-6 दोस्तो को फोन कर के घूमने चलने के बारे में पूछा पर सब व्यस्त थे। खैर घुमा फिरा के बात बना के आकाश जी और मणि जी को तैयार कर लिया। पर ये लोग कार से जाने को तैयार हुए । कोई बात नहीं मैंने कार निकाल कर उन लोगो से 1घंटे में मिलने को बोल दिया। और निकल पड़े हरि से मिलने का विचार बना के।
नियत समय पर पहुंच गए मणि जी के कार्यालय पर,
पर मणि जी ठहरे सुस्त आत्मा उनकी अभी तक कोई तैयारी नहीं थी और अभी आकाश जी को गोरखपुर से उठाना था।
नेपाल में मोबाइल फोन तो काम करेगा नहीं इस बात से मणि जी बहुत चिंतित थे।
मुझे लगा कि कहीं मुझे वापस घर न जाना पड़े अतः मैंने हरिद्वार का जिक्र किया और मणि जी तुरंत तैयार हो गए।
अब सारा प्लान हरिद्वार जाने का बनने लगा आकाश बाबू भी सहजनवा बुला लिए गए और जैसे तैसे सायं2:30तक हम निकल लिए हरिद्वार की तरफ।
पिछले २वर्षों से केदारनाथ जाने की योजना मेरे मन में हमेशा बनती थी पर साथी न मिलने की वजह से हो नहीं पाता था। मन में मैंने सोचा कि चलो इस बार इन लोगो को इस योजना में सम्मिलित करता हूं। क्योंकि वाहन चालक तो मै ही हूं जहां ले चलूंगा चलेंगे ही।
लगभग 15किमी चलने के बाद हमने कहा चलिए केदारनाथ चला जाय, हरिद्वार से मात्र २३१किमी है। आकाश बाबू अवाक होकर मेरा चेहरा देखने लगे। पर मणि जी सहमत थे तो योजना २-१ से विजयी होकर केदारनाथ जाने की बनने लगी।
मणि जी अपना गुणा भाग लगा कर बोले कि "अरे २२ को रात तक गौरीकुंड पहुंच जाएंगे। और २३ की सुबह से चढ़ाई करके केदारनाथ दर्शन कर शाम तक वापस गौरीकुंड आ जाएंगे। फिर २४ तक वापस घर आ जाएंगे।" मुझे उनका हिसाब सुनकर मन में हसी आ रही थी पर अभी जाहिर करने से राज खुल जाने का डर था। अतः मैंने भी उनके हिसाब पर सहमति की मोहर लगा दी।
और इस प्रकार अब हमारी यात्रा हरि से हर की ओर हो चली थी।
सहजनवा से लखनऊ फिर सीतापुर तक पता ही नहीं चला फिर शुरू हुआ खराब रास्ते पर चालक का इम्तिहान और किसी तरह साहजहापुर होते हुए बरेली तक जाते जाते थकान हावी हो गया अब सोना जरूरी था इसलिए एक रात १:३० बजे ढाबा देखकर गाड़ी लगा दी गई और खाना खा कर वहीं पड़ी चारपाई पर तीनों लोग निढाल हो गए।
सुबह ४:३० पर आंख खुली और यात्रा आरंभ कर १०:३० तक हम त्रिमूर्ति वाहन समेत हरिद्वार की सीमा में प्रवेश कर गए। गाड़ी पार्किंग में लगा कर नमामि गंगे बोलते हुए हम गंगा घाट पर वहा गए जहां से मनसा माता का मंदिर उपर पहाड़ी पर दिख रहा था। हरिद्वार में गंगा का तीव्र वेग और स्वच्छ जलधारा देखकर मन प्रसन्न हो गया। अब बारी थी स्नान कि तो पहले मै उतर पड़ा मां गंगा की गोद में पर जल इतना ठंडा था कि तुरंत ही बाहर हो गया। पुनः हिम्मत कर जल में स्वयं को उतारा और किनारे बंधी जंजीर को पकड़ कर वहीं बहते जलधारा में लेट गया । अब ठंड जा चुकी थी। फिर हम सभी लोग लगभग 15मिनट तक स्नान किए। स्नान के बाद वहीं से मा मनसा देवी को प्रणाम किए और वापसी में मिलने की आज्ञा लेकर केदारनाथ दर्शन हेतु अपने मार्ग पर आगे बढ़ चले।
वाह जाना था जापान और पहुच गए चीन
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