एक सफ़र, हरि से हर की ओर-२
वही शून्य है, वही इकाई।
जिसके भीतर बसा शिवायः।
राम भी उसका, रावण उसका।
जीवन उसका, मरण भी उसका।
तांडव है, और ध्यान भी वो है।
अज्ञानी का ज्ञान भी वो है।
मां मनसा देवी से आज्ञा लेने तथा पावन गंगा में स्नान के पश्चात हम अपने ईष्ट के दर्शन को आतुर केदारनाथ की ओर आगे बढ़ चले। पर हरिद्वार और ऋषिकेश को जोड़ने वाली सड़क पर लगा जाम हमें आगे नहीं बढ़ने दे रहा था। किसी तरह रेंगते हुए २:३०घंटे में हम ऋषिकेश पहुंचे।
अभी तक हम मणि जी के किए हिसाब के अनुसार आगे बढ़ रहे थे जिसमे हमारा अगला पड़ाव गौरीकुंड था जो मेरी नजर में आज असंभव लग रहा था पर बिना कुछ बोले मै भी शिवतांडवस्तोत्र सुनता और गुनगुनाता हुआ देवभूमि के प्राकृतिक सौन्दर्य को निहारता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था। अभी हाईवे पर चार धाम परियोजना का कार्य प्रगति पर है अतः हमे कहीं कहीं "कष्ट के लिए खेद है" का सामना करना पड़ा । पर सही बताऊं तो उतना कष्ट हम प्रकृति प्रेमियों को हुआ नहीं।
हमारे फोटो प्रेम जागृत होने और प्रकृति के सौन्दर्य में उत्तरेत्तर वृद्धि होते रहने की वजह से हमारी गाड़ी निर्बाध गति नहीं पकड़ पा रही थी जिस वजह से हमारे श्री नगर पहुंचते पहुंचते घड़ी ने शाम के ७:००बजा दिए। एक टी ब्रेक लेने के बाद पता चला कि देवभूमि उत्तराखंड में रात के ८:००बजे के बाद वाहन चलाना मना है और आप हाईवे पर रोक दिए जाएंगे। खैर इन सब बातो को दरकिनार कर हम फिर से अपनी गाड़ी में आ गए और ये सोच कर गाड़ी बढ़ा दिए कि जहां रोके जाएंगे वहीं रात्रि विश्राम कर लेंगे। रुद्रप्रयाग बाईपास मार्ग पर कुछ पुलिस वालो की गाड़ियां खड़ी दिख रही थी और अब तक ८:३०बज चुके थे। अब हमारा रोका जाना पक्का लग रहा था। लेकिन हम भी ठहरे गोरखपुरी अतः पहुंच गए उन्ही लोगो के पास आगे का रास्ता पूछने के बहाने और उन्हीके पास गाड़ी लगा कर अगस्तमुनि का रास्ता पूछ पड़े। लेकिन उन्हें हमारे रात में चलने से कोई खास दिक्कत नहीं थी ऐसा जान पड़ा उन्होंने बड़े ही शालीनता से हमे आगे का मार्ग बताया और हम अपनी योजना में सफल होकर आगे बढ़ चले।
लेकिन रुद्रप्रयाग से थोड़ी ही दूर आगे बढ़ने पर रास्तों की स्थिति देखकर समझ में आया कि यहां रात में वाहन चलाना मना क्यों है। अब रास्ते हर जगह सकरे हो गए और जगह जगह पत्थर गिरने की वजह से टूटे पड़े थे। धीरे धीरे आगे बढ़ते हुए मणि जी पहली बार अपनी आज की योजना को परिवर्तित करते हुए बोले कि आगे जो भी रुकने की जगह पड़ेगी वहा रात्रि विश्राम करेंगे फिर सुबह आगे बढ़ेंगे। मै भी सुबह से ही गाड़ी चला रहा था इस कारण से मैंने भी उनके इस फैसले का स्वागत किया और गाड़ी तिलवाड़ा नामक जगह पर रोक ली।
तिलवाड़ा रुद्रप्रयाग और अगस्त्मुनी के बीच में पड़ने वाला एक छोटा सा गांव है पर इस गांव में यात्रियों हेतु ठहरने के पर्याप्त साधन उपलब्ध है। हमे भी दिन भर के थकान की वजह से नींद अच्छी आई जिस कारण सुबह ६:३०पर हमारी नीद खुली। फिर वहा से निकलते निकलते ७:०० बज गए। अब तक हमने इतनी जानकारी जुटा ली थी कि हमारी गाड़ी गौरीकुंड से ५किमी पहले सोनप्रयाग से आगे नहीं जा सकती है और सोनप्रयाग में बायोमेट्रिक पास बनवा के हमे गौरीकुंड तक टैक्सी से जाना पड़ेगा जिसका किराया २०/- व्यक्ति है। खैर भोलेनाथ को याद कर एक बार फिर इन उबड़ खाबड़ पहाड़ी रास्तों पर मैंने एक कुशल चालक का परिचय देते हुए गाड़ी आगे बढ़ा दी। घर से निकलने के पूर्व ही हमें मौसम विभाग की २२सितम्बर से २४ सितम्बर की चेतावनी के बारे में थोड़ा बहुत सुनाई पड़ा था। पर उन सभी खबरों से परे हम बढ़ चले थे हर के दर्शन को आतुर हिमालय पर स्थित केदारनाथ कि ओर। लेकिन आज (२३ सितंबर) का मौसम कुछ ठीक नहीं था लगातार रिमझिम रिमझिम बारिश की वजह से रास्तों में कीचड़ भर गया था और कहीं कहीं रास्तों पर छोटे छोटे पत्थर भी गिरे पड़े थे। फिर भी हम धीरे धीरे सावधानी पूर्वक अपनी छोटी सी गाड़ी लेकर आगे बढ़ते जा रहे थे।
यात्रा बढ़िया चल रही है...तिलवाड़ा में रुकने का decision सही है..
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