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दक्षिण भारत के अंतिम छोर तक -४

दक्षिण भारत के अंतिम छोर तक -४

यूं ही चला चल राही,
यूं ही चला चल राही
कितनी हसीन है ये दुनिया।
भूल सारे झमेले, देख फूलों के मेले
बड़ी रंगीन है ये दुनिया।।

इसी तरह हम भी अपनी यायावरी को आगे बढ़ाते हुए अपने अगले पड़ाव महाबलीपुरम की ओर प्रस्थान कर गए।
महाबलीपुरम जिसका एक नाम मामल्लपुरम भी है , है तो एक छोटी जगह पर अपने आप मे एक घुमक्कड़ के लिए सारी विषयवस्तु को समेटे हुए है।
जैसे कि अगर आप फोटोग्राफी के लिए यात्रा करते है तो आप निराश नही होंगे।
अगर आपको इतिहास में रुचि है तो महाबलीपुरम अपने आप मे एक इतिहास की पूरी किताब है।
और अगर आप एडवेंचर के लिए यात्रा करते है तो आप यहाँ जरूर जाइये और एक बार प्लास्टिक के सोल वाले जूते पहन के कृष्णा बटर बॉल के पास जाकर तो दिखा दीजिये। और अगर आप मे अब भी एडवेंचर का शौक बचा है तो समुन्दर तो है ही आपकी रही सही कसर मिटाने के लिए।
खैर हम ठहरे ऐसे घुमक्कड़ जिसे ये सब चाहिए था बस पहुच गए कांचीपुरम से महाबलीपुरम ।
रास्ते मे मुझे याद आया कि history tv18 पर एक सिरियल OMG!YEH MERA INDIA में मैंने एक बार कृष्णा बटर बॉल के बारे में देखा था और यह महाबलीपुरम में ही है। बस फिर क्या था मैंने गूगल बाबा को वही पहले पहुचाने को बोल दिया बाबा जी इस बार बिना ज्यादे भाव खाये नियत स्थान पर पहुचा दिए गाड़ी साइड में लगा कर हम बाहर निकले आज दक्षिण भारत की गर्मी अपना असर दिखा रही थी। सामने कृष्णा बटर बॉल अपने निश्चित स्थान पर टिका हुआ था । हमारे और बटर बॉल के बीच मे एक नारियल पानी का ठेला दिख रहा था चुकी हम दक्षिण भारत मे थे अतः नारियल पानी भी जरूरी था हमने मलाई वाला एक एक नारियल लिया जो हमारी उम्मीद से ज्यादा महंगा था या ऐसे कहे कि हमने दक्षिण भारत मे नारियल पानी के लिए 40 रुपये देना महंगा समझा। खैर नारियल पी खा कर हम पहुच गए कृष्णा बटर बॉल के सामने।
कृष्णा बटर बॉल रहस्यमयी पत्थर का एक विशाल गोला है जो एक ढलान वाली पहाड़ी पर, 45 डिग्री के कोण पर बिना लुढ़के टिका हुआ है। माना जाता है यह कृष्ण के प्रिय भोजन मक्खन का प्रतीक है जो स्वयं स्वर्ग से गिरा है।
"यह पत्थर आकार में 20 फीट ऊँचा और 5 मीटर चौड़ा है। जिसका वजन लगभग 250 टन है। अपने विशाल आकार के वाबजूद कृष्णा की यह बटर बॉल भौतिक विज्ञान के ग्रेविटी के नियमों की उपेक्षा करते हुए पहाड़ी की 4 फीट की सतह पर,  अनेक शताब्दियों से एक जगह पर टिकी हुई है" (साभार गूगल)।
मणि जी इतने में पता नही कब कूदते हुए बाल के एकदम पास पहुचे और अपने हाथों से बॉल को गिरने से बचाने की मुद्रा में एक फोटो लेने का आदेश देने लगे हमारा कैमरा जो अभी मेरे ही पास था उसमें मैने उनके  इस प्रकार के कई मुद्रा का छायाचित्र कैद किया। औऱ अब मामा जी बटर बॉल को रोकने चले उनका भी चित्र भांति भांति से सुरक्षित कर हम भी इस छोटी सी फिसलन भरी पहाड़ी पर ऊपर चढ़ने की कोशिश करने लगे अंत मे अपना चप्पल उतारने के बाद ऊपर चढ़ने में कामयाबी प्राप्त कर हमने भी अपने कुछ छायाचित्रों को कैमरे में स्थान दिलवाया और फिर हम लगे इस छोटी सी पहाड़ी को एक्सप्लोर करने। यहाँ इस बटर बॉल के अलावा तीन और मंदिर भी है जिसमे एक अर्ध निर्मित अवस्था में था। इसके बाद हम पहाड़ी से नीचे उतरे और पहुच गए इसके मुख्य द्वार के पास जहा पत्थरो पर कुछ युद्ध से सम्बन्धित आकृतिया उकेरी गयी थी। इस जगह को अर्जुन तपस्या के नाम से जानते है। मान्यता है कि अर्जुन जिन्‍होने भगवान शिव का हथियार पाने के लिए इस जगह पर काफी कठिन तपस्‍या की थी ताकि उस हथियार से उनके शत्रुओं का वध किया जा सकें।
अब हमारे पेट के चूहे कूदने शुरू हो गए थे अतः हमने पहले इन चूहों को शांत करने के बारे में सोच कर एक बगल के रेस्टोरेंट में घुसपैठ कर दी। दक्षिण भारत मे थे तो खाना भी वही का खाएंगे ये सोचकर हमने मंगा लिया दक्षिण भारतीय थाली । हमारे सामने केले के पत्ते बीछ चुके अब धीरे धीरे एक एक कर डिशेस आनी शुरू हो गयी जिनमे कुल 11-12आइटम थे लेकिन नाम मुझे बस तीन के याद है चावल सांभर और रसम। और यहाँ दक्षिण भारत मे आप चावल सांभर चाहे जितना चाहो मांग सकते हो बिना किसी एक्स्ट्रा चार्ज के। भरपूर पेटपूजा के बाद हम पंचरथ की ओर चले। पार्किंग में गाड़ी लगा कर और पंचरथ के टिकट लेकर पहुच गए पंचरथ के पास।
इस मंदिर के परिसर में पांच अखंड मंदिर है जो पांचों पांडव और उनकी पत्‍नी के नाम पर बनाएं गए है। इस मंदिर को द्रविण सथ्‍यता के दौरान की वास्‍तुकला का अद्भूत स्‍थल माना जाता है।  यह मंदिर इतना मजबूत है कि 13 वीं सदी में भयंकर समुद्री तुफान आने के बावजूद भी यह ज्‍यों का त्‍यों खड़ा रहा। आज भी मंदिर के सब तरफ समुन्द्र के  पीले रेत भरे पड़े है।
यहाँ के बाद हम शोर टेम्पल जाने के विचार से गाड़ी के पास आये और पहुचते ही कुछ पथ्थर से बने  माला बेचने वाली महिलाओ द्वारा हम घेर लिए गए। जो संभवतः(भाषा से) झारखंड की लग रही थी। मणि जी द्वारा मोलभाव किये जाने के पश्चात कुछ खरीदारी कर हम आगे निकल पड़े। थोड़ी ही देर बाद हम शोर टेम्पल की पार्किंग में थे। शोर टेम्पल भी पंचरथ की भांति यूनेस्को की धरोहर सूचि में है ।यहाँ भी टिकट लगता है। चूकि समुन्दर अभी एकदम पास से दिखा नही था उसकी एक झलक पाने को बेताब हम बीच की ओर ही बढ़ने लगे लगभग 500 मीटर रेत में चलकर हम पहुच गए महाबलीपुरम के उस छोर पर जहा समुन्दर का धरती से मिलन होता है। अद्भुत गर्जन समुन्द्र की लहरों के मानो एक दुसरे से कहती हुई की आओ देखते है कि कौन ज्यादे किनारे तक पहुच पाता है। प्रकृति आज यहाँ एक अलग ही तरीके से अपने रूप सवार रही थी । मणि जी एकटक इस सुंदरता को निहारते रहे पर हम और मामा जी पहुच गए लहरो के पास उनसे बाते कर उनसे रेस लगाने। एक दो लहरो ने हमे भिगोया भी पर कोई बात नही हारना भी जरूरी था। एक घंटा कब बीत गया यू ही बच्चो की तरह खेलते हुए पता ही नही चला । चूकि हमने अपने प्लान में आज ही पॉन्डिचेरी पहुचना निश्चित किया था और फिर अब हमें समुन्दर के किनारे किनारे ही सफर करना था अतः महाबलीपुरम की ऐतिहासिक, प्राकृतिक सुंदरता की यात्रा को अपनी यादों में सजोये हम अपने अगले पड़ाव की ओर बढ़ चले............................।

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