हमारे प्यारे मित्र झम्मन लाल की प्यारी कार वहीं की वहीं रात 9:30pm पर खड़ी हो गई थी।
अब तो मेरा टायफायड कन्फर्म हो चुका था। मजनू भाई 7दिन के लिए शहर से बाहर निकल चुके थे। मणि बाबा फोटोशूट हेतु 3नई टीशर्ट और 3नई जीन्स ले चुके थे।
लेकिन अभी हमारा 7:30घंटे बाद आधा भारत इसी कार से देखना बाकी था।
मंजिल का अभी पता नहीं और रास्ते अब तो दिख ही नहीं रहे थे।
पर अब मजनू भाई पर भी अब घुमक्कड़ी इतनी हावी हो चुकी थी कि पीछे हटने का कोई प्रश्न ही नहीं था। रात में ही एक मैकेनिक को फोन कर उसे बुलाने का प्रबंध हो गया, और चल पड़े उसे उठा लाने अब रात में १० बजे उठा लाना ही होगा अपने मन से तो आएगा नहीं।
खैर मैकेनिक आया भी गाड़ी का बोनट खोल कर कुछ देर कुछ हिलाया डुलाया। हम तीनो भी उसे घेर कर कातर निगाहों से उसपर ही आश्रित होकर देख रहे थे पर धोखा ही मिला। गेयर वायर जोड़ना रस्सी बांधने जैसा काम तो था नहीं की गांठ लगाया और हो गया।
मैकेनिक के यह बताने पर की गाड़ी अब सुबह जब दुकान खुलेगी तभी बनेगी, एक जोर का झटका लगा और ऐसे की जैसे अभी अभी नीद से जगे हो।
काफी देर बाद ही विश्वास हुआ की अब हमारी योजना में कुछ परिवर्तन करना पड़ेगा।
इधर मणि बाबा घोड़े बेचकर सो रहे थे इन्हें इन सब बातो से कोई मतलब नहीं था सुबह जाना है तो जाना है नीद पूरी होनी चाहिए गाड़ी बनाना या बनवाना तो मालिक और ड्राइवर लोगो की जिम्मेदारी होती है जोकि मालिक झम्मनलाल और ड्राइवर हम और मजनू भाई थे। खैर इतना सब करने में रात के १२ बज गए और अब हम भी सोने चले आए पर आंखो में तो घूमने के सपने थे नीद कहा आने वाली थी।
मजनू भाई इधर अलग ही प्रोग्राम रच रहे थे। इनका कहना था कि कल किसी भी प्रकार से यहां से निकलना है ट्रेन बस या जो भी मिले पकड़ कर क्योंकि अब मै ७ दिन से पहले घर नहीं जा पाऊंगा।
पर मुझे इससे ज्यादा मित्र झम्मानलाल की प्यारी कार की चिंता थी अगर हम उसे इसी हाल में छोड़ कर निकल गए तो मित्र झम्मनलाल फिर सदा के लिए मित्रता तोड़ बैठेंगे और तोड़े भी क्यों न उनकी प्यारी कार की जो बात थी जिसके gear को हम दोनों ने मिलकर निर्दयता पूर्वक तोड़ दिया था।
सुबह ८बजे जागने वाला इंसान आज सुबह ५बजे जाग कर गाड़ी बनवाने जा रहा है इसे घुमक्कड़ी की आशिकी नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे। मैकेनिक को भी फोन कर सुबह ६ बजे ही उसकी दुकान खुलवा दी गई और गाड़ी बनाने के लिए दे दी गई।
मणि बाबा जो सुबह ५ बजे जाने वाले थे उनका अभी तक कोई अता पता नहीं था।
गाड़ी ११:३०am तक बन कर ठीक हो गई और ठीक होते ही घुमक्कड़ी फिर से जागने लगी १२बजे तक सारा प्लान फिर से सेट हो गया और ०१:००बजे तक हम चारो आवारा यायावर मित्र झम्मनलाल की प्यारी कार में सवार होकर NH 24 पर पश्चिम दिशा में निकल पड़े।
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Wakai me aapki lekhni Rahul sankrityayan se km nhi h
ReplyDelete😃😃😃😃
Deleteधन्यवाद
Ati sundar sir .... Lajwaab....Bahut khub sir...Kya bat kya bat.....
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