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"मेरी इबादत"

ट्रांसफर के बाद नयी जगह पर अभी 3-4 दिन ही हुए थे। आज बैंक मे नये खाते खोलने के लिए बच्चो की काफी भीड़ लगी थी। स्कूल खुल गये थे और बच्चो को छात्रवृत्ति के लिए बैंक मे खाते की आवश्यकता थी । हम भी अपने सीट पर पूरी तन्मयता से काम कर ही रहे थे की अचानक मेरा ध्यान उस 14-15 साल की लड़की पर पड़ा। उसको देखते ही मै स्तब्ध रह गया। नही... नही....  ऐसा नही हो सकता। एक बार मैने अपनी आंखे बन्द की और दोनो हाथो से आंखो को मीच कर फिर खोला अरे बिल्कुल वही शक्ल ये तो असम्भव है। यह बच्ची तो उसकी हुबहू प्रतिकृति है।

वो मेरे पास आई मैने कापते हाथो से उसकी फॉर्म लीया। मेरी नजर उससे हट ही नही रही थी। उसने घुरते हुए मुझे देखा। मैने अपना ध्यान हटा कर उसके फॉर्म पर लगा दिया। मेरा शक सही था, उसकी माँ का नाम वही था। हा वही तो था......... मै अतीत के भवर मे चला गया। आज से 20 साल पहले हम दोनो ने अपनी जिन्दगी के रास्ते अलग अलग कर लिए थे। पर वो 20 साल का एक एक दिन मैने उसकी याद मे ही बिताया है। उसके साथ बिताये हुए हर पल की यादो को मैने अभी तक अपने दिल मे सजा के रखा है।

अचानक से बच्ची बोली, सर मेरा अकाउंट खुल जायेगा ना। और उसकी इस आवाज ने मेरा ध्यान फिर से उसके फॉर्म मे लगाया। मै उसकी माँ को बस एक बार देखने का बहाना खोजने लगा। 

हा बस एक बार देख लेना ही तो था जिसका इन्तजार मै इन 20 सालो से मोक्ष की तरह ही किया है।

इन 20 सालो मे गये हुए हर मन्दिर मे बस इसी के लिए तो इबादत की है।


मैने बोला "बेटी" फॉर्म तो सब सही है पर क्या आपके घर का कोई है जिसका इस बैंक मे खाता है यहा परिचयकर्ता की जगह पर उसके हस्ताक्षर लगेंगे। और ये बोलते हुए मेरे हाथो की दो उंगलिया आपस मे क्रॉस थी।

उसके ये बोलने पर की हा मम्मी का अकाउंट भी इसी बैंक मे है मुझे ऐसे लगा की आज मेरी सबसे बड़ी मुराद परी होने जा रही है।

मैने बोला आप अपनी मम्मी को लेकर आइये तब तक हम आपके अकाउंट को खोल रहे है फिर आपकी मम्मी यहा साइन कर देंगी और उसी समय हम आपको आपका पासबूक, एटीएम, अकाउंट नम्बर भी दे देंगे।

वो चली गई और मै अपने पिछ्ले 10 मिनट मे जो मेरे साथ घटित हुआ उसको समझने की कोशिश करने लगा। ईश्वर बड़ा ही क्रुर लेखक है।


शायद इसी दिन का इन्तजार मुझे सम्पुर्ण जीवन था पर फिर भी उसका सामना करने की हिम्मत मुझमे नही थी।

कुछ समय बाद ही मेन गेट से वो बच्ची दाखिल हुई और पीछे पीछे वो........

ऐसा लगा सारा ब्रह्माण्ड सहसा रुक सा गया है। पृथ्वी ने घुमना बन्द कर दिया और समय थम सा गया। 

मुझे देखते ही वो जड़ हो गई।

उसे उस गेट से मुझ तक आने मे मानो एक उम्र लग गये हो। हम दोनो ने निगाहो मे ही हजारो बाते कर चुके थे।


कांपते होठो से मैने बोला "यहा साइन कर दिजीये"। और उसने कांपते हाथो से वहा साइन कर दिया। उसने मेरी तरफ देखा मैने उसकी तरफ देखा।


बिटिया को उसका पासबुक मिल चुका था और मुझे "मोक्ष" मेरी 20 साल की इबादत का फल।


वो जा चुकी थी पर उसका एहसास अभी अभी मेरे यादो को ताजा कर चुका था। और मै इन यादो के सहारे अपनी बाकी उम्र बड़े आराम से काट सकता था।

...............




कल्पना पर आधारित....




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