एक सफ़र, हरि से हर की ओर-२ वही शून्य है, वही इकाई। जिसके भीतर बसा शिवायः। राम भी उसका, रावण उसका। जीवन उसका, मरण भी उसका। तांडव है, और ध्यान भी वो है। अज्ञानी का ज्ञान भी वो है। मां मनसा देवी से आज्ञा लेने तथा पावन गंगा में स्नान के पश्चात हम अपने ईष्ट के दर्शन को आतुर केदारनाथ की ओर आगे बढ़ चले। पर हरिद्वार और ऋषिकेश को जोड़ने वाली सड़क पर लगा जाम हमें आगे नहीं बढ़ने दे रहा था। किसी तरह रेंगते हुए २:३०घंटे में हम ऋषिकेश पहुंचे। अभी तक हम मणि जी के किए हिसाब के अनुसार आगे बढ़ रहे थे जिसमे हमारा अगला पड़ाव गौरीकुंड था जो मेरी नजर में आज असंभव लग रहा था पर बिना कुछ बोले मै भी शिवतांडवस्तोत्र सुनता और गुनगुनाता हुआ देवभूमि के प्राकृतिक सौन्दर्य को निहारता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था। अभी हाईवे पर चार धाम परियोजना का कार्य प्रगति पर है अतः हमे कहीं कहीं "कष्ट के लिए खेद है" का सामना करना पड़ा । पर सही बताऊं तो उतना कष्ट हम प्रकृति प्रेमियों को हुआ नहीं। हमारे फोटो प्रेम जागृत होने और प्रकृति के सौन्दर्य में उत्तरेत्तर वृद्धि होते रहने की वजह से हमारी गाड़ी निर्बाध