दक्षिण भारत के अंतिम छोर तक-3
जीवन में यात्रा करना एक अलग ही सुंदर अनुभव होता है। यात्रा करने से हर किसी व्यक्ति को देश-दुनिया के विषय में बहुत कुछ सीखने को मिलता है। इससे व्यक्ति एक सीमा के अंदर बंधे रहने से मुक्त होता और जीवन में नई चीजों के बारे में जानता है।
मेरा जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ है इस कारण बचपन में अक्सर इस श्लोक को कही न कही हम सुन ही लेते थे।
'अयोध्या-मथुरामायाकाशीकांचीत्वन्तिका, पुरी द्वारावतीचैव सप्तैते मोक्षदायिकाः।'
और आज हमारी यात्रा का अगला पड़ाव कांचीपुरम ही था।
"काँचीपुरम सम्भवतः तमिलनाडु का सबसे पुराना शहर है जिसने अपने पुराने आकर्षण को बरकरार रखा है"। ऐसा गूगल पर पढ़ने के बाद से ही हमारी कांचीपुरम देखने की जिज्ञासा अपने चरम स्तर पर पहुच गयी। हम भी तिरुपति बालाजी के दर्शन के पश्चात निकल लिए अपनी कार में सवार होकर। हालांकि हमने सुबह मिर्ची वाला इडली बड़ा ही खाया था इस वजह से हमारी भूख बढ़ती जा रही थी पर हम मिर्ची के डर से आंध्र प्रदेश को जल्दी पार करके तमिलनाडु में पहुचना चाहते थे। रात के 8:00 बज चुके थे अतः हमने एक ढाबा देखकर खाना खाने की इच्छा जाहिर की और रोड के किनारे ही गाड़ी लगाकर चल दिये पेटपूजा के लिए।
पेटपूजा के बाद हम अपने सफर पर आगे बढ़ गए और पहुच गए कांची नगरी में रातके9:30तक गूगल बाबा हमे कामाक्षी अम्मान मंदिर तक लेकर गए और वही मंदिर के बगल में एक आरामगाह में एक कमरा लेकर हम अपनी नींद पूरी करने लगे।
सुबह जगते ही मणि जी जिन्हें चाय की तलब लगी थी चाय के चक्कर मे इडली सांभर की दुकान भी ढूंढ लिए। बस फिर क्या था हम भी पहुच गए इडली सांभर की दावत खाने । नास्ते से निवृत होकर हमे सामने कामाक्षी अम्मान मंदिर का विशाल गोपुरम दिखाई दिया। गोपुरम को केंद्र में लेकर 2-4 फ़ोटो लेने के बाद हम मंदिर में दर्शन हेतु प्रवेश किये।लगभग 45 मिनेट में हम मंदिर में जितना घूम सकते थे घूमे और आ गए बाहर अगले मंदिर में जाने हेतु।
यह नगर अपनी रेशमी साडि़यों के लिये भी प्रसिद्ध है। ये साडि़याँ हाथ से बुनी होती हैं, कहते है कि सभी तमिल संभ्रांत परिवार की महिलाओं की साडि़यों में एक ना एक तो कांजीवरम होती ही है।
कामाक्षी मंदिर के बाहर कांजीवरम साड़ियों की बहुत सी दुकानें है। चुकी यह शहर मंदिरो का शहर है और हमे आज ही महाबलीपुरम के लिए भी निकलना था । अतः हमने ज्यादे समय न लगाते हुए अगले मंदिर जो वामन भगवान को समर्पित था वहां गए और फिर श्री एकम्बरनाथ मंदिर दर्शन हेतु गए। एकम्बर नाथ मंदिर में प्रभो के दर्शन पाकर मन अभिभूत हो गया। इस मंदिर के गर्भगृह में स्थित शिवलिंग संकवाकार काले पत्थर से निर्मित है। यहां दर्शन के बाद हमने वैकुंठ पेरुमल मंदिर जो भगवान विष्णु को समर्पित है वहाँ जाने का विचार बनाया और गूगल बाबा से मार्ग पूंछ कर आगे बढ़ने लगे पर इस बार गूगल बाबा ने धोखा दे दिया और हमे शहर से बाहर पहुचा दिया। एक बार हमने आस पास के लोगो से पूछने की कोशिश की पर वहाँ के लोग हमें रास्ता समझा पाने में असफल रहे अतः हमने फिर गूगल बाबा से अनुनय विनय किया पर ये क्या फिर गूगल बाबा हमे धोखा देते हुए वामन भगवान के मंदिर ही ले गए। अब हम हार मान कर महाबलीपुरम ही चलने का प्लान बनाने लगे और कांचीपुरम से निकलने लगे। थोड़ी ही देर चलने बाद हमारे बगल में एक भव्य मंदिर का गोपुरम दिखाई दिया हमारी गाड़ी जो कि मामा जी ड्राइव कर रहे थे । अपने आप उधर की ओर मोड़ दिए और कार से ही पूरे मंदिर की चारदिवरी की परिक्रमा कर के मुख्य द्वार पर पहुच गए । कार पार्किंग में लगा कर हम जब मंदिर के पास पहुचे तब पता चला कि जिस प्रभो को ढूंढने में गूगल बाबा भी धोखे पे धोखा दिए जा रहे थे उस प्रभो ने हमे दर्शन हेतु अपने पास खुद बुला लिया।
मुख्य मन्दिर में भगवान विष्णु की मूर्तियाँ है। ये मूर्तियाँ आकार में काफी बड़ी हैं और भगवान विष्णु को खड़े, बैठे तथा लेटे मुद्राओं में दर्शाती हैं। मंदिर के पिछले हाल में ऊपर गोल्डन लिजार्ड मंदिर है जहाँ एक लंबी लाइन लगी थी पर हमने वहाँ लगे गॉर्ड टाइप के व्यक्ति को 20 रुपया देकर लाइन से छुटकारा पा लिया और हमने वहाँ भी दर्शन कर लिया।
मन्दिर के प्रमुख आकर्षण 1000 खम्भों वाले हॉल हैं। हर खम्भा अनोखा है क्योंकि प्रत्येक खम्भे में अलग मूर्ति तराशी है।
लग रहा था कि यहाँ जितना समय दिया जाय वह कम है पर हमे महाबलीपुरम आज ही जाना था अतः हम अब यहाँ से अपने अगले पड़ाव की तरफ बढ़ लिए।...............
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