आज फिर एक बार भटक जाने दे यार, मुसाफिर हूँ, भटकना आदत में शुमार, लो आज फिर मै निकल पड़ा हूं अपनी यायवरी को आगे बढ़ाने एक अनजान से सफर पर जिसका रास्ता न मुझे पता है न मेरे साथ चल रहे इन तीनों बेचारो को। हुआ भी इस तरह की जब ओखल में सर दिया तो मुस लों से क्या डरना। पिछले एक हफ्ते से मणि बाबा ने नाक में दम कर रखा था कि यार कहीं घूमने चलो कही घूमने चलो इस बार इनके साथ हमारे अभिन्न मित्र झम्मनलाल भी सुर में सुर मिलाए हुए थे और तो और इन्होंने इस बार 15दिनों की अग्रिम अवकाश भी स्वीकृत करा ली थी। अब घूमने की जगह और एक और पार्टनर का जुगाड मुझे करना था। रही बात गाड़ी की तो मित्र झम्मनलाळ इस बार अपनी स्विफ्ट कार ले चलने को राजी थे। हमारे मित्र झम्मन लाल के बारे में एक बात प्रसिद्ध है कि ये सबसे ज्यादे प्रेम 2को करते है एक उनकी पत्नी जिनके आदेश के बिना शायद ये पानी नहीं पीते और दूसरी उनकी कार स्विफ्ट। और इस बार ये दोनों बाते उल्टी हो रही थी मेरे आश्चर्य का ठीकाना नहीं था मुझे तो सब सपने जैसा लग रहा था कि झम्मन लाल को हो क्या गया है। खैर सब कुछ भोलेनाथ पर छोड़कर मै अपने दैनिक कार्य पर लग गया थ