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*दक्षिण भारत के अंतिम छोर तक। -2*

*दक्षिण भारत के अंतिम छोर तक। -2*

दिन ने हाथ थाम कर इधर बिठा लिया
रात ने इशारे से उधर बुला लिया
सुबह से शाम से मेरा दोस्ताना
मुसाफिर हूँ यारों...

बैंगलोर के बाद हमारी यात्रा का प्रथम पड़ाव था श्री तिरुपति बाला जी का दर्शन जिसके लिए मामा जी ने पहले ही स्पेशल दर्शन के टिकट ऑनलाइन बुक करा लिए थे। सुबह 4बजे यात्रा आरम्भ करने का शुभ मुहूर्त बना । अब हम तीनों लोग कार में सवार होकर निकल पड़े तिरुपति बाला जी की ओर..
अभी तक मुझे लग रहा था कि तिरुपति बालाजी बजरंगबली के अवतार है और यहाँ बजरंगबली की पूजा अर्चना की जाती होगी। खैर मेरा यह मिथक मामा जी ने दूर किया और रही सही कसर गूगल बाबा ने दूर कर दीया ।
हमारी गाड़ी अब कर्नाटक राज्य छोड़कर आंध्र प्रदेश में प्रवेश कर चुकी थी । रास्ते मे आम के ठेले लगे हुए दिख रहे थे एक जगह गाड़ी रोककर हमने दक्षिण भारतीय आम के स्वाद लेने का विचार किया। यहाँ के आम हमारे यहाँ के आम से बहुत अलग थे और इस आम को इन लोगो ने बड़े ही बेहतर तरीके से काट कर सजाया था जिसे देखते ही मुँह में पानी आ रहा था । एक अम्मा जी के ठेले पर जाके हमने आम खाने की इच्छा जाहिर की। अम्मा जो सिर्फ तेलगु जानती थी। और हम हिंदी ,भोजपुरी और थोड़ी बहुत अंग्रेजी के अलावा बाकी में शून्य थे। मामा जी की अंग्रेजी अच्छी थी और काम चलाऊ कन्नड़ भी जानते थे पर तेलगु उन्हें भी नही समझ आती थी। खैर हम सभी एक ही देश के वाशी थे अतः भावनाओ से अम्मा को समझा दिए कि हम क्या चाहते है। हमने 30 रुपये किलो के भाव से आम लिए और भीड़ गए आम के रसास्वादन पे। जाते जाते अम्मा पर हमने अपना जादू चला दिया जिसके फलस्वरूप उन्होंने हमें एक आम उपहारस्वरूप में दे दिया। आम खाने के बाद हम आगे की यात्रा पर बढ़ गए।
अब सुबह के 9:00 बज चुके थे पेट मे चूहे आतंक मचा रहे थे अतः अब हमें नास्ते की याद आ रही थी ऊपर से दक्षिण भारतीय नास्ते के बारे में सोच सोच के भूख और बढ़ती जा रही थी। एक रोड साइड रेस्टोरेंट देखकर हमने गाड़ी रोक दी और घुस गए रेस्टोरेंट में और इडली बड़ा का आर्डर दे दिया ।थोड़ी ही देर में प्लेट के ऊपर पेपर लगा के इडली बड़ा सांभर के साथ हमारे सामने था। और साथ मे थी मेरी पसंदीदा नारियल की चटनी। बस फिर क्या था मैंने चम्मच में भर के नारियल की चटनी उठाई और अगले ही पल चटनी मेरे मुंह मे........  सस्सी..... ये क्या था । गले से लेकर पेट तक ऐसा लगा जैसे आग लग गया हो... इतना तीखा...... उस नारियल की चटनी ने गले से मेरे पेट मे जाने के लिए जिस रास्ते का चयन किया था वो पूरा रास्ता मुझे पता चल रहा था।
अब मामा जी ने बताया कि आंध्र प्रदेश में लोग खाने में लाल मिर्च का प्रयोग ज्यादे करते है। पर अब बताने से क्या फायदा मुझे तो पता चल ही चुका था। खैर किसी तरह हमने अपना मिर्च का नाश्ता खतम किया और चल पड़े बालाजी के दर्शन के लिए।
10:15 बजे तक हम तिरूपति चेक पोस्ट पर पहुच गए सामान की जांच करा कर और टोल की पर्ची लेकर हम अब तिरुमाला की पहाड़ियों पर आगे बढ़ने लगे। टोल की पर्ची पर हमारी यात्रा का मिनिमम समय 28 मिनेट लिखा था। मतलब हमे 28 मिनेट से पहले ऊपर चेक पोस्ट नही पहुचना है । पर मुझे लगा वो जो 28 मिनेट से पहले पहुचते होंगे वो ऐसे होंगे जो प्रकृति से प्रेम नही रखते होंगे। तिरुमाला की प्राकृतिक छटा इतनी मनोरम है कि आप बरबस ही रुक जाएंगे। और हमारे साथ तो फ़ोटो प्रेमी मणि जी भी तो है जिनका बस चले तो हर कदम पे एक फोटो यहाँ भी करते रहे। कुछ रास्ते के दृश्यों को कैमरों में कैद करने के पश्चात हम 11:20 बजे तक तिरुपति देवस्थानम पहुच गए कार पार्किंग में खड़ी करने के पश्चात तिरूपति यात्रा हेतु लाया हुआ विशेष परिधान धारण कर हम दर्शन हेतु अपने विशेष दर्शन मार्ग की खोजबीन करने लगे। मुझे लग रहा था कि हमारे पास तो विशेष दर्शन का टोकन है तो ज्यादे दिक्कत होनी नही है अभी 1घंटे में दर्शन हो जाएंगे फिर आके भोजन करेंगे और आगे बढ़ेंगे।
थोड़ी ही देर बाद मुझे मेरी भूल का एहसास हो गया। ऐसे ही तिरुपति बालाजी को सबसे धनी देव का दर्जा नही मिला है। और सबसे धनी देव के दर्शन हेतु आप मात्र 300 रुपये में विशेष नही हो सकते । आगे हमारी विशेष दर्शन की लाइन दिख रही थी जो कही से मंदिर के आस पास भी नही थी। मन मे दर्शन का विचार लेकर हम भी लाइन में लग लिए और हिंदी अंग्रेजी तमिल तेलगु और कन्नड़ को मिक्स कर किसी दूसरे लोक की भाषा मे आपस मे बात करते हुए आगे बढ़ने लगे।
इसी लाइन में लगे लगे पता चला कि दक्षिण भारतीय भी हर राज्य के हिसाब से अलग अलग स्वभाव के होते है। यहाँ कुछ हिंदी भाषी भाई भी मिले ऐसे लगा कि प्यासे को किसी ने पानी की कुछ बूंदे पिला दी। खैर लंबी लाइन के बाद एक हॉल और फिर लंबी लाइन के बाद हमे श्री बालाजी के 10 सेकेंड के दर्शन प्राप्त हुए जो कही से भी पर्याप्त नही लग रहा था पर अब दुबारा दर्शन करने की हिम्मत भी नही थी। अतः मंदिर प्रांगण से बाहर निकले और अपने लड्डू प्रसाद के स्थान को ढूढने लगे। थोड़ी मसक्कत के बाद हमे हमारा लड्डू प्रसाद मिल गया जिसे थोड़ा थोड़ा खा कर हम अन्नक्षेत्र की ओर बढ़ गए।
पर ये क्या यहाँ भी एक लंबी कतार और अभी 4 बज रहे है यहाँ भोजन आधे घंटे बाद प्रारम्भ होगा। मामा जी को अपने बाल भी दान करने थे अतः हम कल्याण कट्टा की तरफ चल दिये। मामा जी ने अपने थोड़े से बाल दान किये और हम आ गए वापस अपनी सवारी के पास अपने यात्रा के अगले पड़ाव कांचीपुरम की ओर जाने के लिए।.....
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