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Showing posts from 2020

मेरी डेट...

 मै करीब 19साल का था। डोपामिन और फिनाइल-इथाइल-एमाइन नामक रसायन शरीर में प्रतिक्रिया कर रहे थे। रातों की नीद गायब थी दिन का चैन गायब था। In shorts..... I was in love someone... दिल में कुछ कुछ हो रहा था। अब यह एकतरफा नहीं था। क्युकी अब मै अपने पहले डेट पर जाने वाला था। जगह डिसाइड हो गया। शहर का एक अच्छा और जाना माना रेसटोरेंट्स था वो. स्टेटस जमाने का चांस कैसे छोड़ सकता था। So the place was fixed... अब चुकीं डेट पर जाने का ये मेरा पहला अनुभव था और मैंने इस मिशन को अभी सीक्रेटली ही प्लान किया था तो मुझे कोई आइडिया था नहीं की डेट पर करते क्या है। 2-4 मूवी में देखा था लड़का लड़की डेट पर मिलते है वो कैंडल लाइट डिनर करते है। खूब सारी बाते करते है फिर लड़का लड़की को उसके घर के पास ड्रॉप करता है और रेसटोरेंट्स और घर के बीच में कहीं वो एक दूसरे को एक किस करते है।  अब डेट पर जाने के लिए well dressed होना बहुत जरूरी होता है। तो हमने भी स्पेशल इसी दिन के लिए एक नई शर्ट और जीन्स ले ली। एक रिस्ट वॉच भी ले ली।  आखिर वो दिन भी आ गया जिसका मुझे इंतज़ार था।  आज कमवख्त शाम ही नहीं हो रही थी। फिर शाम हुई

"मेरी इबादत"

ट्रांसफर के बाद नयी जगह पर अभी 3-4 दिन ही हुए थे। आज बैंक मे नये खाते खोलने के लिए बच्चो की काफी भीड़ लगी थी। स्कूल खुल गये थे और बच्चो को छात्रवृत्ति के लिए बैंक मे खाते की आवश्यकता थी । हम भी अपने सीट पर पूरी तन्मयता से काम कर ही रहे थे की अचानक मेरा ध्यान उस 14-15 साल की लड़की पर पड़ा। उसको देखते ही मै स्तब्ध रह गया। नही... नही....  ऐसा नही हो सकता। एक बार मैने अपनी आंखे बन्द की और दोनो हाथो से आंखो को मीच कर फिर खोला अरे बिल्कुल वही शक्ल ये तो असम्भव है। यह बच्ची तो उसकी हुबहू प्रतिकृति है। वो मेरे पास आई मैने कापते हाथो से उसकी फॉर्म लीया। मेरी नजर उससे हट ही नही रही थी। उसने घुरते हुए मुझे देखा। मैने अपना ध्यान हटा कर उसके फॉर्म पर लगा दिया। मेरा शक सही था, उसकी माँ का नाम वही था। हा वही तो था......... मै अतीत के भवर मे चला गया। आज से 20 साल पहले हम दोनो ने अपनी जिन्दगी के रास्ते अलग अलग कर लिए थे। पर वो 20 साल का एक एक दिन मैने उसकी याद मे ही बिताया है। उसके साथ बिताये हुए हर पल की यादो को मैने अभी तक अपने दिल मे सजा के रखा है। अचानक से बच्ची बोली, सर मेरा अकाउंट खुल जायेगा ना। और

सच्ची सोलमेट

एक दिन वॉट्सएप पर एक लंबा सा मैसेज आया। जाने क्या क्या लिख रखी थी वो, अभी आधा ही पढ़ा था कि भावनाओं का तूफान उमड़ पड़ा। अक्षर धुधलाने लगे। आंखे नम होने लगीं। समाज का डर था ऑफिस में आंखे गीली कैसे करता। बड़ी मुश्किल से खुद को संभाला और नयनों के कपाट बंद करते हुए वापस उन्ही दिनों में चला गया। ट्रियुंड ट्रैकिंग के समय "अब मुझसे और ना चढ़ा जाएगा मयंक। अभी कितना ऊपर और जाना है?" कम ऑन तुम कर सकती हो बस थोड़ी दूर और बोलकर मैंने हाथ बढ़ा दिया और उसे अपनी ओर खींच लिया था। सिर्फ थोड़ी ही देर में हम दोनों टॉप पर थे और वहां हमारे साथ था बर्फ से भरा मैदान सामने एक और उची बर्फ से लदी चोटियां और हम दोनों के चेहरे पर विजय मुस्कान। ताजी हवा चेहरे को छु छू कर सिहरन जगा रही थी। प्रकृति के इस नरम स्पर्श ने मन को सहला दिया था। तापमान कम था जैसे उचाईयो पर अमूमन होता है मै इस पल को आत्मसात कर लेना चाहता था आंखे बंद कर बस इस दृश्य को दिल में भरने लगा। थोड़ी देर बाद जब आंखे खोला तो पाया कि उसके नयनयुग्म मुझ पर ही अटके हुए है। हे,, क्या हुआ तुम्हे, कहा खोई हो!! कहां खो सकती हूं, तुम ना होते तो

अजनबी हमसफ़र.

अतीत के पन्नों से..... आज ना जाने क्यूं बार बार मन अतीत के यादों की भवर में चला जा रहा है.... हां हां.... मुझे अच्छी तरह याद है आज का ही दिन था वो वैशाली एक्सप्रेस की एस 4 की सीट नंबर 63साइड लोअर की बर्थ थी मेरी, और ट्रेन में घुसते ही अपने रिज़र्वेशन का पूरा पैसा वसूल करने के खातिर पैर पसार कर बैठ गया था मै। लगभग आधे घंटे बाद वो परेशान सी इधर उधर देखते हुए बोगी में टहल रही थी। उसके माथे पर पसीने की दो बूंदे चमक रही थी और उसके बालो से दो लट उन चमक को ढकने की बेकार सी कोशिश कर रहे थे।  पतली सी थोड़ी सांवली सी और बड़ी सी आंखों वाली..... एक परी जैसी! हां हां.. एकदम मेरे सपनों वाली परी के जैसी ही तो थी वो।  अचानक हमारी आंखे एक दूसरे से मिली हाय........ दिल थम सा गया मेरा लगा सांसे जैसे रुक ही जाएंगी.. बस उसे निहारता ही रह गया था मै.... मेरा अल्हड़पन था या उसके सौन्दर्य का असर जो मुझे उस वक़्त सब कुछ छोड़कर बस उसी की आंखो में झांकने पर विवश कर चुका था... सहसा उसके मोती जैसे चमकते दांत दिखाई पड़े और इंग्लिश के दो शब्द जो हमारी उसकी बातों के सिलसिले के पहले शब्द थे, मुझे सुनाई पड़े &

असुरत्व से देवत्व की ओर.....

हम अपने ऊपर पड़ी विपत्तियों को अगर ध्यान से देखे तो दिखेगा कि सदैव विपत्तियां हमे अच्छी सीख भी देकर जाती है। अब इस कोरोना नामक विपत्ति को ही ले लीजिए इसने हमारे जीवन शैली में इतना परिवर्तन ला दिया है कि हम भूल गए है कि हम २१सदी जैसे मॉडर्न युग में जीवन व्यतीत कर रहे है। आज हम धीरे धीरे सभी प्रकार के दोषों से मुक्त हुए जा रहे है। किसी को भी किसी से द्वेष नहीं रहा ना ही हम लोगो में किसी प्रकार का विकार,  आज कल कहीं भी किसी प्रकार का अपराध सुनाई भी नहीं पड़ रहा है। सब तरफ मात्र इस कोरोनावायरस नामक राक्षस के चर्चे ही सुनाई दे रहे है। हमारा देश आज इस असुर के सर्वनाश के लिए एक दिख रहा है। हमारे एक अभिन्न मित्र आज हमारा हाल चाल पूछते वक्त हमसे आज दिन कौन सा है पूछ बैठे और सच बताए तो हमे भी एक पल सोचना पड़ा कि सच में आज कौन सा दिवस है। आज हम इस हमारे बनाए हुए रविवार सोमवार जैसे नाना प्रकार के मायाजाल से मुक्त हो रहे है। या यूं कहे कि हम देवत्व को प्राप्त हो रहे है। आज गांव से शहरों को ओर पलायन करने वाले वापस फिर से अपने गांव में शरण ले लिए है। और जो नहीं आ पाए वो अपने गांव के सुख को य

सबके राम🙏

लॉक डाउन विशेष - अगर आप गोस्वामी तुलसीदास रचित श्रीरामचरित मानस का अध्ययन करेंगे तो आपको पता चलेगा की श्रीराम के सीता जी के वियोग में वन में भटकना एवं महादेव के द्वारा सती का परित्याग कर उनके वियोग में भटकना एक समानांतर काल की घटनाएं है। महादेव और श्रीराम दोनो एक दूसरे के भक्त है और दोनो एक दूसरे के भगवान भी है। भक्त और भगवान के बीच की प्रीति से बढ़कर प्रीति कोई नहीं हो सकती ऐसे में अगर एक पर कष्ट आता है तो दूसरा कैसे बच सकता है। जब श्री हरि श्री राम के अवतार में पृथ्वी पर साधारण मनुष्यों सा अपने पिता के वचनों के पालन हेतु वन में भटक रहे थे उसी समय महादेव को अपने आराध्य प्रभु के दर्शनों की इच्छा जगी और देवी सती सहित प्रभु के दर्शन हेतु पृथ्वी पर आ गए उस समय रावण सीता जी का हरण कर चुका था और प्रभु एक सामान्य मनुष्य की भांति पत्नी विरह में दुखी होकर वन में इधर उधर भटक रहे थे ऐसे में महादेव ने प्रभु को देखा और दूर से ही शीश झुका कर नमन किया। सती जी ने देखा कि हमारे पति जो तीनों लोको के स्वामी है आज एक साधारण मनुष्य के सामने नतमस्तक हो रहे है जो अपनी पत्नि के वियोग में इधर उधर भटक

अधूरा हमसफर..

ट्रेन चलने को ही थी कि अचानक उसका जाना पहचाना सा चेहरा स्टेशन पर दिखा। वो अकेली थी। चेहरे पर कुछ परेशानी की रेखाओं के साथ थी वो। कुछ ढूंढती से लग रही थी। मेरा घर जाना जरूरी था। मगर यहां ऐसे हालात में उस शख्स से मिलना। जिंदगी के लिए एक संजीवनी के समान था। चलती ट्रेन से कूद पड़ा गिर कर संभलते हुए उसके पास उसी के बेंच पर कुछ इंच की दूरी बना कर बैठ गया। जिंदगी भी कमबख्त कभी कभी अजीब से मोड़ पर ले आती है। ऐसे हालातों से सामना करवा देती है जिसकी कल्पना तो क्या कभी ख्याल भी नही कर सकते । पर उसने ना मेरी तरफ देखा। ना पहचानने की कोशिश की। कुछ इंच की और दूरी बना कर चुप चाप बैठी रही। बाहर सावन की रिमझिम लगी थी। इस कारण वो कुछ भीग गई थी। मैने कनखियों से नजर बचा कर उसे देखा। उम्र के इस मोड़ पर भी वो बिल्कुल वैसी की वैसी ही थी। हां कुछ भारी हो गई थी। मगर इतना ज्यादा भी नही। फिर उसने अपने पर्स से चश्मा निकाला और मोबाइल में लग गई। चश्मा देख कर मुझे कुछ आश्चर्य हुआ। उम्र का यही एक निशान उस पर नजर आया था कि आंखों पर चश्मा चढ़ गया था। उसके सर पे मैने सफेद बाल खोजने की कोशिश की मग़र मुझे नही द

कोरोनावायरस के दुष्परिणाम

आज पंडितजी बहुते परेशान होकर दुआरे पर इधर से उधर टहल रहे थे और परेशान रहे भी क्यों न कल से नवरात्र शुरू हो रहे है पंडिताइन का आदेश है कि घर में कूछू बचा नाही है कुछु लेके ही घरे आना है। पर पंडितजी कैसे समझाए कोरोना के डर के मारे कौनो जजमान घरे से नीकरी नहीं रहे है अ जौन निकरने की हिम्मत कर रहे है अगले चौरहवे पर बलभर कुट दिए जा रहे है ऐसे में पंडितजी तक आएगा कौन। ऊपर से यह मंदी में एगो नवरात्र का सहारा था कि पूजा पाठ कर कुछू कमा लेंगे और तनी हालत सुधर जाएंगे। पर अब तो लगता है अंबा मैया ही सहारा है। खैर यह उहा पोह में पंडितजी घर में आए पंडिताइन को समझाए , अजी देखो नव दिन हम उपवास रखबे करते है आज एक दिन और बढ़ा लेते है आज केहू जजमान नहीं आ रहा है कउनो व्यवस्था नाही हो पा रहा है । कल कौनों न कऊनो जजमान पूजा करवावे खातिर दूआरे पर आइबे करेगा फलाहार की व्यवस्था कर लेंगे। पंडिताइन के पास भी कऊनो उपाय नहीं था आखिर अबहिन दुई दिन पहिले ही कुल चोरौधा पंडितजी को सुपुर्द कर दुुई दिन के भोजन की व्यवस्था की थी झख मार के आज दुनो परानी सो गए। रोज के तरह आज भी सुबह हुआ पर चैत के पहिले दिने वाला रौनक क

कोरोनावायरस एक महामारी

आज मन बहुत ही द्रवित है कोरोनावायरस सुरसा की तरह मुंह फैलाए खड़ा है और हम इसके शिकार बनते जा रहे है। पता है इसमें सबसे ज्यादा गलती हमारी ही है । हमारे राज्य उत्तर प्रदेश में आज गोरखपुर समेत 15जिले लॉक डाउन कर दिए गए है। सुरक्षा की दृष्टि से बहुत ही अच्छा काम है यह पर लोगो को भी समझना पड़ेगा लोग अभी भी इस भयानक महामारी को हल्के में ले रहे है। आज सुबह बैंक जा रहा था रास्ते में एक पेट्रोल पंप पर लगभग 50की संख्या में लोग अपने अपने वाहनों में पेट्रोल भरवाने के लिए लाइन में एक दूसरे को पीछे करने के चक्कर में लगे थे। उनके से 75%लोगो को में जानता हूं वे लोग किसी आपातकाल के लिए नहीं सिर्फ गांव गांव निकल कर फोटो लेने और इस बंदी को त्योहार के रूप में मनाने के लिए अपने वाहनों में पेट्रोल भरवाने के लिए लाइन लगाएं थे। खैर इन सब से उबर कर मै बैंक पहुंचा। बैंक खोला और जैसे ही काउंटर पर बैठा। एक सम्माननीय ग्राहक आए उनकी उम्र भी लगभग 65साल थी। उन्हें अपने खाते को मोबाइल नंबर से लिंक करवाना था। मैंने समझाया श्रीमानजी आज कल बैंक सिर्फ जरूरतमंद लोगों के लिए खोले जा रहें है। ताकि कोई दवा या भोजन के लि