ट्रेन चलने को ही थी कि अचानक उसका जाना पहचाना सा चेहरा स्टेशन पर दिखा। वो अकेली थी। चेहरे पर कुछ परेशानी की रेखाओं के साथ थी वो। कुछ ढूंढती से लग रही थी। मेरा घर जाना जरूरी था। मगर यहां ऐसे हालात में उस शख्स से मिलना। जिंदगी के लिए एक संजीवनी के समान था। चलती ट्रेन से कूद पड़ा गिर कर संभलते हुए उसके पास उसी के बेंच पर कुछ इंच की दूरी बना कर बैठ गया।
जिंदगी भी कमबख्त कभी कभी अजीब से मोड़ पर ले आती है। ऐसे हालातों से सामना करवा देती है जिसकी कल्पना तो क्या कभी ख्याल भी नही कर सकते ।
पर उसने ना मेरी तरफ देखा। ना पहचानने की कोशिश की। कुछ इंच की और दूरी बना कर चुप चाप बैठी रही। बाहर सावन की रिमझिम लगी थी। इस कारण वो कुछ भीग गई थी। मैने कनखियों से नजर बचा कर उसे देखा। उम्र के इस मोड़ पर भी वो बिल्कुल वैसी की वैसी ही थी। हां कुछ भारी हो गई थी। मगर इतना ज्यादा भी नही।
फिर उसने अपने पर्स से चश्मा निकाला और मोबाइल में लग गई।
चश्मा देख कर मुझे कुछ आश्चर्य हुआ। उम्र का यही एक निशान उस पर नजर आया था कि आंखों पर चश्मा चढ़ गया था। उसके सर पे मैने सफेद बाल खोजने की कोशिश की मग़र मुझे नही दिखे।
उसने शायद मेरी नजर को भाप कर अपने सर पर साड़ी का पल्लू डाल लिया।
फिर वह अपने मोबाइल में लग गई। मेरी इच्छा जानने की कोशिश भी नही की क्यू मै उसे घुर रहा हूं। उसकी यही बात हमेशा मुझे बुरी लगती थी। फिर भी ना जाने उसमे ऐसा क्या था कि आज तक मैंने उसे नही भुलाया। एक वो थी कि दस सालों में ही भूल गई। मैंने सोचा शायद अभी तक गौर नही किया। पहचान लेगी। थोड़ा मोटा हो गया हूँ। शायद इसलिए नही पहचाना। मैं उदास हो गया।
जिस शख्स को जीवन मे कभी भुला ही नही पाया उसको मेरा चेहरा ही याद नही😔
माना कि वो शादीशुदा है। मैं भी शादीशुदा हुँ जानता था इसके साथ रहना मुश्किल है मग़र इसका मतलब यह तो नही कि अपने खयालो को अपने सपनो को जीना छोड़ दूं।
एक तमन्ना थी कि कुछ पल खुल के उसके साथ गुजारूं। माहौल दोस्ताना ही हो मग़र हो तो सही😔
आज वही शख्स पास बैठी थी जिसे स्कूल टाइम से मैने दिल मे बसा रखा था। सोसल मीडिया पर उसके सारे एकाउंट चोरी छुपे देखा करता था। उसके हर कविता, हर शायरी में खुद को खोजा करता था। वह तो आज पहचान ही नही रही😔
आधे घण्टे से ऊपर हो गया। वो आराम से मेरे पास बैठी मोबाइल में लगी थी। देखना तो दूर चेहरा भी ऊपर नही किया उसने😔
मैं कभी मोबाइल में देखता कभी उसकी तरफ। सोसल मीडिया पर उसके एकाउंट खोल कर देखे। तस्वीर मिलाई। वही थी। पक्का वही। कोई शक नही था। वैसे भी हम बैंक वाले चेहरा पहचानने में कभी भी धोखा नही खा सकते। 20 साल बाद भी सिर्फ आंखों से पहचान ले☺️
फिर कुछ वक़्त और गुजरा अचानक मेरे फोन पर फोन बजा श्रीमती जी का फोन था ओह मै तो भूल ही गया था मुझे अब तक घर पहुंच जाना चाहिए था। उधर से आवाज आई कहा हो अभी तक.......
मै कुछ बोलने की स्थिति में नहीं था हकलाता हुआ बोला म.. म... मै छूट गया... ट.ट.. ट्रेन छूट गया।
फिर फोन काट दिया।
इतने देर बाद उसके चेहरे पर हसी थी मेरी तरफ देख कर हस रही थी वो।
उसकी वही खिलखिलाती हुई हसी जिसके लिए मै अपनी जान भी दे सकता था आज वर्षों बाद दिखीं थी मुझे।
खुद ही बोली वो बिल्कुल वैसे के वैसे ही रह गए अभी तक इतने देर से हो मेरे पास एक शब्द भी नहीं बोले अभी तक मै तुम्हे काट थोड़े लूंगी।
घर आई थी रक्षाबंधन था भाई को राखी बांधने, इनके पास टाइम नहीं था तो अकेले आ गई थी। सुना कि इसी स्टेशन से रोज गाड़ी पकड़ते हो तुम, तुम्हे देखने की इच्छा थी आगई, कल भी आईं थीं तुमने पहचाना ही नहीं और आज भी असमंजस में थे।
मुझे पता था तुम मुझे भूल जाओगे............................
इतना सब कुछ एक सांस में बोल कर वो आज फिर चली गई। और मै आज फिर आवक, मुक सा उसे निहारता ही रह गया।
आज एकबार फिर ना उसने मुझे सुनने की कोशिश की और ना मै उसे रोकने की कोशिश कर पाया।
इस पूरी कहानी के लिए दो लाइने मेरी तरफ से....
ReplyDeleteवो मेरे घर नहीं आता मैं उस के घर नहीं जाता..!
मगर इन एहतियातों से तअल्लुक़ मर नहीं जाता..!!
क्या बात...
Deleteधन्यवाद।
बहुत ही सुंदर लिखे है प्रभु
Delete👍👍👍
Thanks 🙏
ReplyDeleteKya bat h jija ji kon thi wo .... mujhe bta diye hote m apni di ko bta deti😂😂😂😂😂 kya story like j
ReplyDeleteThanks
Deleteचमची
Yhi hota pyaar h kya ❤️
ReplyDelete🙏😄
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