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"यात्रा मुक्तिनाथ की" -२

"मैं आराम से १०से५ की नौकरी कर रहा था ये कहां आज इन गड्ढों में बाइक लेकर घुल फांक रहा हूं।"  लगभग आधा घंटा आधा किलो धूल खाने और ओढ़ने के बाद धूल उड़ाती हुई बस के पीछे अपनी बाइक को दूसरे से पहले गियर में डाल कर एक उबड खाबड़ गढढे में किसी तरह बाइक निकालते हुए बड़बड़ाया था।

दरअसल अभी २७ सितम्बर को केदारनाथ से सकुशल वापस आने के बाद मम्मी पापा और घरवाली की भरपूर डांट सुनने के बाद मैंने सोचा था कि अब मार्च तक कहीं घूमने नहीं जाऊंगा। बस मन लगाकर नौकरी करूंगा।
पर ३० अक्टूबर को जब मैं अपने बैंक में मन लगाकर कुछ ग्राहकों के खाते खोल रहा था तभी मनीष भाई का फोन अचानक मेरे फोन पे बजा और मैं कुछ बोलता इससे पहले मुक्तिनाथ दर्शन का पूरा प्लान मेरे घुमक्कड़ दिमाग में घुसा दिया गया था। माता जी को इस प्लान की जानकारी तब हुई जब बैग पैक कर मै ३१अक्टूबर२०१८ को उनका आशीर्वाद लेने उनके कमरे में गया। खैर मम्मी से आशीर्वाद के रूप में खरी खोटी सुनकर हसता हुआ नेपाल के लिए मै निकल पड़ा था। और आज १नवंबर को पोखरा से परमिट बनवाने के बाद मै यहां रास्तों में मनीष भाई के साथ धूल फांक रहा था।


हमारी बाइक धड़धड़ाते हुए बेधड़क बेनी तक पहुंच गई थी।
चुकी पोखरा में ही गाड़ी का ईधन टैंक फुल करा लिया गया था। तो अब बेनी से जोमसोम की ओर आगे बढ़ना ही हमारा उद्देश्य था। और हम बढ़ते भी जा रहे थे। अचानक एक नेवी ब्लू कलर वाली शर्ट पहने हुए ट्रैफिक सिपाही द्वारा हमे रोका गया। और जब तक हम उनकी नेपाली भाषा समझते हमारा परमिट वाला कागज उनके हाथों में पहुंच गया। एक सिपाही ने हमें और हमारी भारतीय गाड़ी को पूरी तरह चेक किया और अंत मे पाया की मनीष भाई का हेलमेट बंद नहीं है। अब इसका भी चालान कटता है ये आज पता चला। खैर बहुत मिन्नत करने पर भी ना मानने पर झक मारके ५००रुपए अर्थदंड भर और मनीष भाई का हेलमेट बंद करा गाली बड़बड़ाते हुए हम आगे बढ़ चले। 

३घंटे में १०० किमी गाड़ी चला चुके थे हम। पर अब थी हमारी असली परीक्षा, रास्ते अब खत्म हो गए और शुरू हो गया ऑफ रोडिंग का एडवेंचर, और बगल में गरजती हुई अपने नाम के अनुरूप काली गंडकी नदी। कभी पहले कभी दूसरे और बहुत देर बाद कभी कभी तीसरे गियर में गाड़ी डाल कर इन धूल भरे रास्तों  में हम बारी बारी से गाड़ी बढ़ाते हुए तातोपानी पहुंच गए। अब बाइक पर बैठना बाइक चलाने से ज्यादा कष्टकारी लग रहा था ।


एक बार फिर १०-१० किमी की पारी बांध कर गाड़ी की कमान फिर मेरे हाथ में आ गई। पर मेरी किस्मत मुझसे रूठी जो थी, चढ़ाई शुरू हो गई और ऊपर से रास्तों पर पत्थर कहीं कहीं कुछ ज्यादा बड़े बड़े पड़े थे। कभी कभी pulser150 की भी सांस अटक जाती थी। इससे अब मेरा बाइक चलाने का कॉन्फिडेंस भी जा रहा था। किसी तरह १घंटे में १०किमी की दूरी पूरी हुई और मेरी चलाने की बारी खत्म। मनीष भाई ने भी एक कुशल चालक का परिचय देते हुए आरंभ तो किया पर अंत तो एक जैसा ही होना था। एक बार फिर से मेरी बारी आई पर इस बार हालात और बुरे होने थे। अब हमारे सामने काली गंडकी नदी खुद हमारा रास्ता रोके खड़ी थी। शाम क्या लगभग रात हो चुकी थी। चारो तरफ पसरा काला सन्नाटा और उसमे गाड़ी के हेडलाइट से सामने दिखती कल कल करती काली नदी किसी हॉरर फिल्म के सेट जैसी लग रही  थी। और इसपर ठंड से ठिठुरते हम इस ठंडे पानी से भरी काली नदी को पार करने को सोच रहे थे । हमारे पीछे २ हैडलाइट जलती हुई दिख रही थी तो हमने सोचा कि थोड़ी देर रुक जाते है और अब पीछे जो गाड़ी आ रही है उसे ही लीड करने देते है। थोड़ी देर में ही एक स्कॉर्पियो हमारे बगल से गुजरी और धीरे धीरे नदी के पानी में घुस कर पार हो गई। इसे देख एक आइडिया मिल गया कि कैसे और कहां से पार करना है । मैंने मनीष भाई को उतार कर गाड़ी पानी में घुसा दी उफ्फ इतना ठंडा पानी ये तो सोचा ही नहीं घुटने तक पानी में भीगने के बाद और इसी तरह २-३ धाराओं को पार करने के बाद फिर से गढढो वाले रोड पे आ गया। जूते भीगने से अब पैर के पंजे ठंड से शून्य हो रहे थे।

खैर अब जोमसोम १०-१२किमी रह गया और रात ८:००बज गए तो आगे जो भी रुकने की जगह मिलेगी वहां रुकना तय हो गया।

४-५ किमी चलने के बाद मारफॉ में एक होटल कम रेस्टोरेंट में रुकने की बात करने गए। २००nr/व्यक्ति में सोने के लिए डॉरमेट्री इस शर्त पर मिली कि खाना यहीं खाना पड़ेगा। खाना तो खाना ही था पर सच बताए तो रेट जानने के बाद भूख भाग गई।
वेज खाना(दाल चावल साग और सब्जी) ३६०nr/प्लेट था। खैर ये शर्त में था तो मानना ही था। खैर भोजनोपरांत रेस्टोरेंट के हॉल में ही हमारा बिस्तर लग गया और हम थोड़ी देर में ही गहरी नीद में आ गए। अब सपने भी इन खराब रास्तों के ही आ रहे थे।


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मुक्तिनाथ दर्शन यात्रा पर यदि आप बाइक से जा रहे है तो कुछ सावधानियां जो आपको निश्चित ही याद रखनी चाहिए ------
१- इस यात्रा हेतु ऐसी बाइक का चयन करें जिसे आप आसानी से कुछ दूर पैदल भी ले जा सके। क्योंकि रास्ते है ही नहीं और बाइक में कोई भी खराबी होने पर सबसे निकटतम सहायता लगभग १०-१५किमी के अंतर पर ही मिलेगी।

२- पेट्रोल टैंक बेनी पहुंचते ही या पहले ही फूल करा ले क्योंकि बेनी के बाद पेट्रोल पंप नहीं है। और बेनी से लगभग ८०+८०=१६०किमी दूरी तय करनी है।

३- धूल से बचने के लिए एक मास्क जरूर लगाएं।

४- बड़ी गाड़ियों को जल्दीबाजी में ओवरटेक ना करे समय और जगह मिलने पर ही करे।
५- गाड़ी अतयंत सावधानी से चलाएं क्योंकि आपकी एक गलती यहां आखिरी साबित हो सकती है।

अंत में कुछ जानकारी -------
गाड़ी की रिपेयरिंग के लिए बेनी के बाद तातोपनि और जोमसोम में कुछ दुकानें है। पर इनके लिए आपको अपनी जेब कुछ ज्यादा ढीली करनी पड़ेगी।
बेनी और जोमसोम में बजाज के सर्विस सेंटर भी दिखे थे।

खाने की चीज़े यहां महंगी है तो इनके लिए आप पहले से तैयार रहे।

क्रमश................

Comments

  1. अक्सर जैसा आपके साथ हुआ मेरे साथ भी यही होता है...कही घूम कर आने के बाद ऐसा सोचता हूं के अब इतने वक़्त तक कही नही जाऊंगा लेकिन वो कभी सफल नही होता....भाभी और आंटी की डांट खाने का डर नही था जब आपको बैंक में फोन पर प्लान बताया...हाहाहा हँसी आ गयी यह पढ़कर अच्छा भला job कर रहा रहा यह कहा आ गया धूल खाने...वो कार पर करने से जो आपने जजमेंट लगाया वाकई काबिले तारीफ है और यह सच मे आपने एडवेंचर का मजा लिया...एक और एडवेंचर है जिससे आप रह गए कि पंक्चर नही हुआ...में कही भी bike से घूमने जाता हूं मुझे सबसे बड़ा डर पंक्चर का ही रहता है क्योंकि पंक्चर होने के बाद में पैनिक हो जाता हूं...जबरदस्त घुमक्कड़ी ऑफ रॉडिंग एडवेंचर की....

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